ह्रदय में कुछ साध लेकर उड़ चला पंछी अकेला !
नील नभ के सुघर उपवन ओर बढ़ता जा रहा था,
केतकी के कुञ्ज सा उड्पुन्ज मन को भा रहा था,
खोजती थीं चपल आँखें शांत, निर्जन, शून्य कोटर,
रच सके वह रह जहाँ निज कल्पना का नीड़ सुन्दर,
रवि किरण मुरझा रही थी, आ रही थी सांध्य बेला !
ह्रदय में कुछ साध लेकर उड़ चला पंछी अकेला !
थक चुके थे पंख उसके छा रही मन पर उदासी,
क्रूर जग की निठुरता से हो दुखी, जीवन निरासी,
अलस उर में शून्य का साम्राज्य अविचल छा रहा था,
उस प्रताड़ित आत्मा पर शोक तम गहरा रहा था,
सोचता वह बैठ जाऊँ एक क्षण को पंख फैला !
ह्रदय में कुछ साध लेकर उड़ चला पंछी अकेला !
तृण चुनूँ कोमल उदित रवि किरण के सुन्दर सुहाने,
श्वेत बादल से चुनूँ कुछ रूई के टुकड़े लुभाने,
चाँदनी की चुरा कतरन सुघर तारक कुसुम चुन लूँ,
और अपनी प्रियतमा संग नीड़ नव निर्माण कर लूँ,
हो सुखद संसार मेरा, हो मधुर प्रात: सुनहला !
ह्रदय में कुछ साध लेकर उड़ चला पंछी अकेला !
देखता हूँ इधर कुछ फैले हुए से नाज के कण,
झिलमिलाते गेहूँओं की कांति से है सुघर हर कण,
ला चुगाऊँ नवल कोमल बालकों को चैन पाऊँ,
शान्ति का संसार रच लूँ प्रेम का जीवन बिताऊँ,
निर्दयी झंझा न होगी और बधिकों का न मेला !
ह्रदय में कुछ साध लेकर उड़ चला पंछी अकेला !
इस जगत में स्वार्थ से हैं भरे सब ये आज प्राणी,
दूसरों की शान्ति सुख का हरण करते हैं गुमानी,
मारते ठोकर, सहारा बेबसों को भी न देते,
चोंच में आया हुआ चुग्गा झपट कर छीन लेते,
दीखता जब यह सुघर उपवन न क्यों छोड़ूँ झमेला !
ह्रदय में कुछ साध लेकर उड़ चला पंछी अकेला !
किरण
दीखता जब यह सुघर उपवन न क्यों छोड़ूँ झमेला !
जवाब देंहटाएंह्रदय में कुछ साध लेकर उड़ चला पंछी अकेला !
मुझे तो यहाँ सभी रचनायें इतनी अधिक भाती हैं कि अब तो शब्द नहीं होते तारीफ करने के.
इस जगत में स्वार्थ से हैं भरे सब ये आज प्राणी,
जवाब देंहटाएंदूसरों की शान्ति सुख का हरण करते हैं गुमानी,
मारते ठोकर, सहारा बेबसों को भी न देते,
चोंच में आया हुआ चुग्गा झपट कर छीन लेते,
बहुत सच बात कही है आपने ....
सुन्दर रचना ...
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तृण चुनूँ कोमल उदित रवि किरण के सुन्दर सुहाने,
जवाब देंहटाएंश्वेत बादल से चुनूँ कुछ रूई के टुकड़े लुभाने,
चाँदनी की चुरा कतरन सुघर तारक कुसुम चुन लूँ,
और अपनी प्रियतमा संग नीड़ नव निर्माण कर लूँ,
कविता अभिधेयात्मक एवं व्यंजनात्मक शक्तियों को लिए हुए है। आपकी कविता कोई जादुगरी नहीं वास्तविक जीवन की सक्षम पुनर्रचना है सर्जनात्मक ऊर्जा की सक्रियता है । मकसद है - सबकी जिंदगी बेहतर बने । बिल्कुल अपठनीय और गद्यमय होते जा रहे काव्य परिदृश्य पर आपकी यह कविता एक सुखद अनुभूति प्रदान करती है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
साहित्यकार-महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
बहुत भाव प्रवण मन को छूती कविता |अच्छी रचना पढवाने के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
इस जगत में स्वार्थ से हैं भरे सब ये आज प्राणी,
जवाब देंहटाएंदूसरों की शान्ति सुख का हरण करते हैं गुमानी,
मारते ठोकर, सहारा बेबसों को भी न देते,
चोंच में आया हुआ चुग्गा झपट कर छीन लेते,
दीखता जब यह सुघर उपवन न क्यों छोड़ूँ झमेला !
ह्रदय में कुछ साध लेकर उड़ चला पंछी अकेला !
साधना जी इस दुनिया को देख कर तो कभी कभी यही लगता है। आदमी को अपनी बहुत सी इच्छायें ले कर संसार से विदा लेनी पडती है। बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना। बधाई।
इस जगत में स्वार्थ से हैं भरे सब ये आज प्राणी,
जवाब देंहटाएंदूसरों की शान्ति सुख का हरण करते हैं गुमानी,
मारते ठोकर, सहारा बेबसों को भी न देते,
चोंच में आया हुआ चुग्गा झपट कर छीन लेते,
साधना जी आप इतना अच्छा साहित्य पढवा रहीं हैं कि आनंद आ जाता है ...माताजी कि रचनाएँ एक अमूल्य धरोहर हैं ..जब भी पढ़ती हूँ मुझे महादेवी वर्मा जी की यादें ताज़ा हो जाती हैं ...बहुत सुन्दर रचना है यह भी ..
सबकी जिंदगी बेहतर बने । आपकी यह कविता एक सुखद अनुभूति प्रदान करती है।
जवाब देंहटाएंदेखता हूँ इधर कुछ फैले हुए से नाज के कण,
जवाब देंहटाएंझिलमिलाते गेहूँओं की कांति से है सुघर हर कण,
ला चुगाऊँ नवल कोमल बालकों को चैन पाऊँ,
शान्ति का संसार रच लूँ प्रेम का जीवन बिताऊँ,
निर्दयी झंझा न होगी और बधिकों का न मेला !
ह्रदय में कुछ साध लेकर उड़ चला पंछी अकेला !
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श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना जी की रचनाओं को तो मैं शुरू से ही पसंद करता हूँ!
क्या कहूं? बहुत सुन्दर. पारम्परिक काव्य-विधा में लिखी गई रचनाएं पढने का शौक, यहां आके पूरा हो जाता है.
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