बुधवार, 22 सितंबर 2010

* नवगान *

कौन सा नव गान गाऊँ !
हैं सभी स्वर लय पुराने
कौन सी नव गत बजाऊँ !
कौन सा नव गान गाऊँ !

श्याम अलकों में छिपाये
चँद्रमुख वह रजनि आती,
तारकों से माँग भर कर
स्वप्न जीवन में सजाती,
वह सुखी है,प्रिय,दुखी उर
मैं उसे कैसे दिखाऊँ !

कौन सा नव गान गाऊँ !

चरण अंकित कर महावर
से उषा सुन्दरि सुहागन,
पूजने आती दिवाकर
हृदय में ले साध अनगिन,
भावना के लोक से
कैसे उसे मैं बाँध लाऊँ !

कौन सा नव गान गाऊँ !

प्रिय मिलन को जा रही सरि
आश के दीपक सजाये,
खिलखिलाती लहरियों में
नूपुरों के स्वर मिलाये,
वह अलस मस्ती कहाँ से
व्यथित उर में साध पाऊँ !

कौन सा नव गान गाऊँ !

किरण

9 टिप्‍पणियां:

  1. भावमयी सुन्दर रचना ...किरण जी की लेखनी को नमन

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  2. किरणजी का यह गीत बेहद मनोहारी है लेकिन एक जिज्ञासा है कि यह नव गत क्‍यों होता है। आपने लिखा है कि कौन सी नव गत बजाऊँ? नौबत तो सुनी थी। कृपया स्‍पष्‍
    ट करें।

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  3. सुन्दर गीत। शाय्द अजित जी के सवाल का जवाब इन पँक्तिओं मे है
    कौन सा नव गान गाऊँ !
    हैं सभी स्वर लय पुराने
    कौन सी नव गत बजाऊँ !
    कौन सा नव गान गाऊँ !
    सभी स्वर लय पुराने तो नव गीत कैसे बनेगा। बहुत खूब। शुभकामनायें।

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  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति |
    आशा

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  5. अजीत जी गीत की सराहना के लिये धन्यवाद ! वाद्य यंत्रों पर राग रागिनियों की जो धुन बजाई जाती है उसे गत कहते हैं ! यह मैं अपने अल्प ज्ञान के आधार पर कह रही हूँ ! आप किसी संगीतज्ञ से इसके बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकती हैं ! 'उन्मना' पर आने के लिये आपका पुन: धन्यवाद !

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  6. बेहद लयबद्ध और सुन्दर गीत्।

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  7. बहुत सुन्दर सा गीत है...बिलकुल गाया जा सके...इतना लयबद्ध..

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  8. सरस गीत। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्‍ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

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