शनिवार, 25 सितंबर 2010

* मैंने कितने दीप जलाए *

कितने दीप जलाये मैंने कितने दीप जलाये !

मेरे स्नेह भरे दीपक थे,
सूनी कुटिया के सम्बल थे,
मैंने उनकी क्षीण प्रभा में
अगणित स्वप्न सजाये !

मैंने कितने दीप जलाए !

आँचल से उनको दुलराया,
तूफानों से उन्हें बचाया,
मेरे अँधियारे जीवन को
ज्योतित वो कर पाये !

मैंने कितने दीप जलाये !

अंधकार रजनी की बेला,
नभ पर है तारों का मेला,
उनसे तेरा मन ना बहला
मेरे दीप चुराये !

मैंने कितने दीप जलाये !

तूने क्या इसमें सुख पाया,
मेरे आँसू पर मुसकाया,
निर्मम तुझको दया न आई
मेरे दीप बुझाये !

मैंने कितने दीप जलाये !

किरण

16 टिप्‍पणियां:

  1. मैंने कितने दीप जलाये ...
    निर्मम तुझको दया न आई
    मेरे दीप बुझाये !..
    सुख और दुःख दोनों मन की ही अवस्थाएं है , जीवन है , मृत्यु है ,
    उल्लास है , उदासीनता है ...
    यही जीवन है ...!

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  2. आँचल से उनको दुलराया,
    तूफानों से उन्हें बचाया,
    हर घर, हर आंगन और हर मन का तम दूर हो और प्रकाश फैले, कवियत्री की इस संवेदना को नमन। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    साहित्यकार-बाबा नागार्जुन, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

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  3. निदा फाजली साहब का कलम है न :
    उम्मीदों के लिए, थोड़ा सा भी है बहुत,
    डूबते सूरज से चिरागों को जलाया जाए !
    तो दीपक जलाते रहिये, और लिखते रहिए

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  4. तूने क्या इसमें सुख पाया,
    मेरे आँसू पर मुसकाया,
    निर्मम तुझको दया न आई
    मेरे दीप बुझाये !

    मैंने कितने दीप जलाये !
    बहुत सुन्दर!

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  5. तूने क्या इसमें सुख पाया,
    मेरे आँसू पर मुसकाया,
    निर्मम तुझको दया न आई
    मेरे दीप बुझाये !

    मैंने कितने दीप जलाये !
    बहुत भाव पुर्ण रचना, लेकिन उस की रचना वो जाने कब किस का दीप बुझा दे, धन्यवाद इस सुंदर रचना के लिये

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  6. तूने क्या इसमें सुख पाया,
    मेरे आँसू पर मुसकाया,
    निर्मम तुझको दया न आई
    मेरे दीप बुझाये !

    मैंने कितने दीप जलाये !

    मन की वेदना को बताती पंक्तियाँ .... दीप जलाने का प्रयास और बुझाने के बीच की स्थिति ..सुन्दर अभिव्यक्ति

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  7. निर्मम तुझको दया न आई..... यह ‘निर्मम‘ ही सम्पूर्ण कविता का केन्द्र बिंदु है....मुझे तो इस ‘निर्मम‘ पर ही दया आ रही है। .....बहुत ही भावपूरित कविता ...सुंदर...।

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  8. अंधकार रजनी की बेला,
    नभ पर है तारों का मेला,
    उनसे तेरा मन ना बहला
    मेरे दीप चुराये !

    मैंने कितने दीप जलाये !
    --

    आपकी माता जी की यह बहुत ही प्यारी कविता है!

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  9. bahut hi behtareen rachna...
    मेरे ब्लॉग पर इस बार धर्मवीर भारती की एक रचना...
    जरूर आएँ.....

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  10. . दीप जलाने का प्रयास और बुझाने के बीच की स्थिति ..सुन्दर अभिव्यक्ति

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  11. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! बधाई!

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  12. बहुत सुन्दर रचना है। किरण जी को बधाई।

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  13. तूने क्या इसमें सुख पाया,
    मेरे आँसू पर मुसकाया,
    निर्मम तुझको दया न आई
    मेरे दीप बुझाये ...

    काव्यात्मक अभिव्यक्ति है .... बहुत सुंदर ....

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