आँसू दे सन्देश ह्रदय की व्यथा सुनायें,
आहें दे आदेश प्रेम का पंथ दिखायें !
लख जीवन गति स्वयम् देव तुम जान सकोगे,
मेरे उर के भाव प्राण पहचान सकोगे !
आस न देना मुझे कुटिल जग छलने वाली,
मत देना विश्वासपूर्ण दुनिया मतवाली !
नहीं तुम्हारे दिव्य चरण की दर्श लालसा,
और न जग जो प्रेम वधिक के सघन जाल सा !
देना दुःख का देश तुम्हें उसमें पाउँगी,
या दुखियों का प्रेम कि जिसमें खो जाउँगी !
मिल जायेंगे निश्छल मन से मैं-तुम तुम-मैं,
पाप पुञ्ज सा दुखमय जीवन करके सुखमय !
हम दोनों का प्रेम वहीं सीमित हो जाये,
क्षुद्र जगत के जीव उसे पहचान न पाये !
किरण
हम दोनों का प्रेम वहीं सीमित हो जाये,
जवाब देंहटाएंक्षुद्र जगत के जीव उसे पहचान न पाये !
सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई
दार्शनिक अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना.
जवाब देंहटाएंयथार्थ लेखन। अच्छा संदेश।
जवाब देंहटाएंहिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।
bhn saahnaa ji aasunon ka itnaa behtyrin rishta or in rishton kaa behtrin chitrn bhut khub mubaark ho. akahtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंहै प्रेम तत्त्व में समाहित सब जग की भाषा,
जवाब देंहटाएंकर परिभाषित उसे सीमित करने की न अभिलाषा.
सुन्दर शब्द रचना ...
मिल जायेंगे निश्छल मन से मैं-तुम तुम-मैं,
जवाब देंहटाएंपाप पुञ्ज सा दुखमय जीवन करके सुखमय !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...हर रचना मन को आनंदित करती है ..
आस न देना मुझे कुटिल जग छलने वाली,
जवाब देंहटाएंमत देना विश्वासपूर्ण दुनिया मतवाली !
bhawpoorn abhivyakti