शनिवार, 4 सितंबर 2010

* आँसू दे सन्देश *

आँसू दे सन्देश ह्रदय की व्यथा सुनायें,
आहें दे आदेश प्रेम का पंथ दिखायें !

लख जीवन गति स्वयम् देव तुम जान सकोगे,
मेरे उर के भाव प्राण पहचान सकोगे !

आस न देना मुझे कुटिल जग छलने वाली,
मत देना विश्वासपूर्ण दुनिया मतवाली !

नहीं तुम्हारे दिव्य चरण की दर्श लालसा,
और न जग जो प्रेम वधिक के सघन जाल सा !

देना दुःख का देश तुम्हें उसमें पाउँगी,
या दुखियों का प्रेम कि जिसमें खो जाउँगी !

मिल जायेंगे निश्छल मन से मैं-तुम तुम-मैं,
पाप पुञ्ज सा दुखमय जीवन करके सुखमय !

हम दोनों का प्रेम वहीं सीमित हो जाये,
क्षुद्र जगत के जीव उसे पहचान न पाये !


किरण

8 टिप्‍पणियां:

  1. हम दोनों का प्रेम वहीं सीमित हो जाये,
    क्षुद्र जगत के जीव उसे पहचान न पाये !
    सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई

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  2. bhn saahnaa ji aasunon ka itnaa behtyrin rishta or in rishton kaa behtrin chitrn bhut khub mubaark ho. akahtar khan akela kota rajsthan

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  3. है प्रेम तत्त्व में समाहित सब जग की भाषा,
    कर परिभाषित उसे सीमित करने की न अभिलाषा.

    सुन्दर शब्द रचना ...

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  4. मिल जायेंगे निश्छल मन से मैं-तुम तुम-मैं,
    पाप पुञ्ज सा दुखमय जीवन करके सुखमय !

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...हर रचना मन को आनंदित करती है ..

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  5. आस न देना मुझे कुटिल जग छलने वाली,
    मत देना विश्वासपूर्ण दुनिया मतवाली !
    bhawpoorn abhivyakti

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