साथी बादल घिर कर आये !
नया संदेशा इस धरती के लिये खोज कर वे लाये ,
साथी बादल घिर कर आये !
हरी भरी हो उठी धरिणी यह सबको जीवन दान मिला है ,
झुलसे सूखे तरु पुंजों को फलने का वरदान मिला है ,
पाया कृषकों ने अपना धन ये बादल उसके मन भाये !
साथी बादल घिर कर आये !
सूखे खेतों की मिट्टी में आई फिर से नयी जवानी ,
प्यासे सागर, तालों में भर गया मधुर अमृत सा पानी ,
सुखी हुई सब सृष्टि, सभी प्राणी सुख से भर कर मुस्काये !
साथी बादल घिर कर आये !
सुखद वायु बह उठी पूर्व से गीत जागरण का गाती सी ,
उद्वेलित करती सबका मन , चंचलता से इठलाती सी ,
चातक, दादुर, मोर उदासी तज पागल होकर हर्षाये !
साथी बादल घिर कर आये !
किन्तु जीर्ण कुटिया वह देखी साथी अब भी सूनी-सूनी ,
देख-देख कर सबका सुख नित आहें भरती दूनी-दूनी ,
उसके लिये सभी कुछ सूना कौन उसे अब धीर बँधाये !
साथी बादल घिर कर आये !
बैठी उसकी तरुणी बाला बाट जोहती निज प्रियतम की ,
ठगी-ठगी सी चौंक-चौंक पड़ती सुध-बुध खो निज तन मन की ,
उसके परदेसी प्रियतम का कौन संदेशा बादल लाये !
साथी बादल घिर कर आये !
घोर निराशा के बादल उसके उर के आँगन में छाये ,
आहों की पुरवा बहती, नित नयन नीर सावन बरसाये ,
सखी कौन इस पावस की तुलना उस पावस से कर पाये !
साथी बादल घिर कर आये !
किरण
नया संदेशा इस धरती के लिये खोज कर वे लाये ,
साथी बादल घिर कर आये !
हरी भरी हो उठी धरिणी यह सबको जीवन दान मिला है ,
झुलसे सूखे तरु पुंजों को फलने का वरदान मिला है ,
पाया कृषकों ने अपना धन ये बादल उसके मन भाये !
साथी बादल घिर कर आये !
सूखे खेतों की मिट्टी में आई फिर से नयी जवानी ,
प्यासे सागर, तालों में भर गया मधुर अमृत सा पानी ,
सुखी हुई सब सृष्टि, सभी प्राणी सुख से भर कर मुस्काये !
साथी बादल घिर कर आये !
सुखद वायु बह उठी पूर्व से गीत जागरण का गाती सी ,
उद्वेलित करती सबका मन , चंचलता से इठलाती सी ,
चातक, दादुर, मोर उदासी तज पागल होकर हर्षाये !
साथी बादल घिर कर आये !
किन्तु जीर्ण कुटिया वह देखी साथी अब भी सूनी-सूनी ,
देख-देख कर सबका सुख नित आहें भरती दूनी-दूनी ,
उसके लिये सभी कुछ सूना कौन उसे अब धीर बँधाये !
साथी बादल घिर कर आये !
बैठी उसकी तरुणी बाला बाट जोहती निज प्रियतम की ,
ठगी-ठगी सी चौंक-चौंक पड़ती सुध-बुध खो निज तन मन की ,
उसके परदेसी प्रियतम का कौन संदेशा बादल लाये !
साथी बादल घिर कर आये !
घोर निराशा के बादल उसके उर के आँगन में छाये ,
आहों की पुरवा बहती, नित नयन नीर सावन बरसाये ,
सखी कौन इस पावस की तुलना उस पावस से कर पाये !
साथी बादल घिर कर आये !
किरण
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबैठी उसकी तरुणी बाला बाट जोहती निज प्रियतम की ,
जवाब देंहटाएंठगी-ठगी सी चौंक-चौंक पड़ती सुध-बुध खो निज तन मन की ,
उसके परदेसी प्रियतम का कौन संदेशा बादल लाये !
बहुत मर्मस्पर्शी वर्षा चित्रण...कुछ के लिये यह खुशी लाता है तो कुछ की आँखें नम हो जाती हैं..बहुत सुन्दर रचना..आभार
, तालाब और सागर को प्यासा बताकर और उन प्यासों को अम्रत जैसा मिलना उत्तम अभिव्यक्ति। मोर पपीहे का इतना हर्षित हो जाना लगे वे पागल हो गये है। अब कविता ने तत्क्षण दूसरा रंग ले लिया ,अचानक कवि की दृष्टि जीर्णशीर्ण और सूनी कुटिया की ओर चली जाती है। फिर प्रणय और विरह । एक रचना में कितने रंग भर दिये गये है । उत्तम अतिउत्तम
जवाब देंहटाएंबादलों के साथ विरह का इतना सुन्दर वर्णन ... बहुत अच्छी रचना ... किरण जी की हर रचना उत्कृष्ट होती है
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और भावनात्मक प्रस्तुति....बधाई।
जवाब देंहटाएंसखी कौन इस पावस की तुलना उस पावस से कर पाये !
जवाब देंहटाएंजीवनदायी प्रकृति एवं बादलों का अतिसुन्दर वर्णन
घोर निराशा के बादल उसके उर के आँगन में छाये ,
जवाब देंहटाएंआहों की पुरवा बहती, नित नयन नीर सावन बरसाये ,
सखी कौन इस पावस की तुलना उस पावस से कर पाये !
Aah!
bahut sundar v man ko aanandit karne vali rachna .aabhar
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चित्रण किया आप ने विराह का...
जवाब देंहटाएंबैठी उसकी तरुणी बाला बाट जोहती निज प्रियतम की ,
ठगी-ठगी सी चौंक-चौंक पड़ती सुध-बुध खो निज तन मन की ,
उसके परदेसी प्रियतम का कौन संदेशा बादल लाये !
अति सुंदर
घोर निराशा के बादल उसके उर के आँगन में छाये ,
जवाब देंहटाएंआहों की पुरवा बहती, नित नयन नीर सावन बरसाये ,
सखी कौन इस पावस की तुलना उस पावस से कर पाये !
ओह!!! बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना...
बहुत गहरी रचना,पढ़ते पढ़ते भाव अंकित होने लगते हैं मन में।
जवाब देंहटाएंbhut hi gahri aur bhaavpur rachna...
जवाब देंहटाएंआज आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएंबटुए में , सपनों की रानी ...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .
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बहुत सुंदर चित्रण किया आप ने विराह का...
जवाब देंहटाएंबहुत गहन अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत गहरी रचना
जवाब देंहटाएंकरीब १५ दिनों से अस्वस्थता के कारण ब्लॉगजगत से दूर हूँ
जवाब देंहटाएंआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
सूखे खेतों की मिट्टी में आई फिर से नयी जवानी ,
जवाब देंहटाएंप्यासे सागर, तालों में भर गया मधुर अमृत सा पानी ,
सुखी हुई सब सृष्टि, सभी प्राणी सुख से भर कर मुस्काये !
क्या कहना, बहुत सुंदर
badalon ke bahane virah ki sunder vyakhya....
जवाब देंहटाएंसुखद वायु बह उठी पूर्व से गीत जागरण का गाती सी ,
जवाब देंहटाएंउद्वेलित करती सबका मन , चंचलता से इठलाती सी ,
चातक, दादुर, मोर उदासी तज पागल होकर हर्षाये !
साथी बादल घिर कर आये !
वाह! आनंदित हो गया मन.बादलों के घिरने से सुन्दर वातावरण हो गया है.
घोर निराशा के बादल उसके उर के आँगन में छाये ,
जवाब देंहटाएंआहों की पुरवा बहती, नित नयन नीर सावन बरसाये ,
सखी कौन इस पावस की तुलना उस पावस से कर पाये !
गहन ...कविता में डूब गया मन ...
बहुत सुंदर रचना ...