ओ भ्रमित मानवों जा रहा है समय ,
बाँध लो कर्म की डोरियों से इसे !
क्या पता चाँदनी यूँ खिलेगी सदा ,
क्या पता यामिनी यूँ मिलेगी सदा ,
क्या पता सूर्य की ये प्रखर रश्मियाँ
यूँ तपाने धरा को चलेंगी सदा !
फिर मलय फूल को क्या खिला पायेगा ,
क्या न बन ज्वाल जग को जला जायेगा ,
या तुम्हारी विषम भावना का गरल
मेट सौंदर्य सबका चला जायेगा !
भावना भीति की मत हृदय में भरो ,
देख रोड़े डगर में न मन में डरो ,
हो चकित सृष्टि सब देखती ही रहे
जो भी करना है ऐसा निराला करो !
भेंट दो व्यर्थ की भ्रान्तियाँ शान्ति से ,
क्या मिलेगा तुम्हें नित्य की क्रान्ति से ,
यह न जीवन किसी का अमर है यहाँ
जगमगा दो जगत कर्म की क्रान्ति से !
बंद कर दो यह नरमेध बेकार है ,
ज़िंदगी का सहारा अरे प्यार है ,
है इसीमें वतन की सुरक्षा निहित
नाश का मन्त्र यह विश्व संहार है !
देखती क्षुब्ध संध्या बिखरते महल ,
खोजता है गगन भूमि पर कुछ पहल ,
प्रश्न उठते अनेकों प्रकृति से सदा
जो न मुश्किल हैं समझो न जिनको सहल !
है उनींदा कदम काल की चाल का ,
साध लो प्रीति की लोरियों से इसे !
ओ भ्रमित मानवों जा रहा है समय
बाँध लो कर्म की डोरियों से इसे !
किरण
बाँध लो कर्म की डोरियों से इसे !
क्या पता चाँदनी यूँ खिलेगी सदा ,
क्या पता यामिनी यूँ मिलेगी सदा ,
क्या पता सूर्य की ये प्रखर रश्मियाँ
यूँ तपाने धरा को चलेंगी सदा !
फिर मलय फूल को क्या खिला पायेगा ,
क्या न बन ज्वाल जग को जला जायेगा ,
या तुम्हारी विषम भावना का गरल
मेट सौंदर्य सबका चला जायेगा !
भावना भीति की मत हृदय में भरो ,
देख रोड़े डगर में न मन में डरो ,
हो चकित सृष्टि सब देखती ही रहे
जो भी करना है ऐसा निराला करो !
भेंट दो व्यर्थ की भ्रान्तियाँ शान्ति से ,
क्या मिलेगा तुम्हें नित्य की क्रान्ति से ,
यह न जीवन किसी का अमर है यहाँ
जगमगा दो जगत कर्म की क्रान्ति से !
बंद कर दो यह नरमेध बेकार है ,
ज़िंदगी का सहारा अरे प्यार है ,
है इसीमें वतन की सुरक्षा निहित
नाश का मन्त्र यह विश्व संहार है !
देखती क्षुब्ध संध्या बिखरते महल ,
खोजता है गगन भूमि पर कुछ पहल ,
प्रश्न उठते अनेकों प्रकृति से सदा
जो न मुश्किल हैं समझो न जिनको सहल !
है उनींदा कदम काल की चाल का ,
साध लो प्रीति की लोरियों से इसे !
ओ भ्रमित मानवों जा रहा है समय
बाँध लो कर्म की डोरियों से इसे !
किरण
ओ भ्रमित मानवों जा रहा है समय
जवाब देंहटाएंबाँध लो कर्म की डोरियों से इसे !
-समय अपनी रफ्तार चल रहा है...एक हम हैं चेतते नहीं.
उत्तम संदेश देती रचना.
है उनींदा कदम काल की चाल का ,
जवाब देंहटाएंसाध लो प्रीति की लोरियों से इसे !
ओ भ्रमित मानवों जा रहा है समय
बाँध लो कर्म की डोरियों से इसे !
बहुत बढ़िया रचना
साभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
समय का महत्त्व दर्शाती बहुत सुंदर रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
आज ऐसी रचनाएं दुर्लभ हैं, पढवाने के लिए आपका आभार !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंभेंट दो व्यर्थ की भ्रान्तियाँ शान्ति से ,
जवाब देंहटाएंक्या मिलेगा तुम्हें नित्य की क्रान्ति से ,
यह न जीवन किसी का अमर है यहाँ
जगमगा दो जगत कर्म की क्रान्ति से !
कर्म की क्रान्ति ही सबसे महत्वपूर्ण है...
सार्थक कविता
उत्तम संदेश देती रचना|
जवाब देंहटाएंek sandesh deti rachna... very nice...
जवाब देंहटाएंहै उनींदा कदम काल की चाल का ,
जवाब देंहटाएंसाध लो प्रीति की लोरियों से इसे !
ओ भ्रमित मानवों जा रहा है समय
बाँध लो कर्म की डोरियों से इसे !
समय की चाल को बताती सुन्दर रचना ...बहुत सुन्दर सन्देश दे रही है ...कर्म के धर्म को महत्त्व दे रही है ..
लाजवाब अभिव्यक्ति भावनाओं की।
जवाब देंहटाएंआभार साधना जी।
बंद कर दो यह नरमेध बेकार है ,
जवाब देंहटाएंज़िंदगी का सहारा अरे प्यार है ,
है इसीमें वतन की सुरक्षा निहित
नाश का मन्त्र यह विश्व संहार है !
बहुत सुन्दर सार्थक प्रेरना देती रचना
धन्यवाद।
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच
बहुत सुन्दर सन्देश
जवाब देंहटाएंऐसी रचनाएं.... पढवाने के लिए आपका आभार !
कुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 15 दिनों से ब्लॉग से दूर था
जवाब देंहटाएंइसी कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका !