शुक्रवार, 10 जून 2011

बाँध लो कर्म की डोरियों से इसे

ओ भ्रमित मानवों जा रहा है समय ,
बाँध लो कर्म की डोरियों से इसे !

क्या पता चाँदनी यूँ खिलेगी सदा ,
क्या पता यामिनी यूँ मिलेगी सदा ,
क्या पता सूर्य की ये प्रखर रश्मियाँ
यूँ तपाने धरा को चलेंगी सदा !

फिर मलय फूल को क्या खिला पायेगा ,
क्या न बन ज्वाल जग को जला जायेगा ,
या तुम्हारी विषम भावना का गरल
मेट सौंदर्य सबका चला जायेगा !

भावना भीति की मत हृदय में भरो ,
देख रोड़े डगर में न मन में डरो ,
हो चकित सृष्टि सब देखती ही रहे
जो भी करना है ऐसा निराला करो !

भेंट दो व्यर्थ की भ्रान्तियाँ शान्ति से ,
क्या मिलेगा तुम्हें नित्य की क्रान्ति से ,
यह न जीवन किसी का अमर है यहाँ
जगमगा दो जगत कर्म की क्रान्ति से !

बंद कर दो यह नरमेध बेकार है ,
ज़िंदगी का सहारा अरे प्यार है ,
है इसीमें वतन की सुरक्षा निहित
नाश का मन्त्र यह विश्व संहार है !

देखती क्षुब्ध संध्या बिखरते महल ,
खोजता है गगन भूमि पर कुछ पहल ,
प्रश्न उठते अनेकों प्रकृति से सदा
जो न मुश्किल हैं समझो न जिनको सहल !

है उनींदा कदम काल की चाल का ,
साध लो प्रीति की लोरियों से इसे !
ओ भ्रमित मानवों जा रहा है समय
बाँध लो कर्म की डोरियों से इसे !


किरण



14 टिप्‍पणियां:

  1. ओ भ्रमित मानवों जा रहा है समय
    बाँध लो कर्म की डोरियों से इसे !


    -समय अपनी रफ्तार चल रहा है...एक हम हैं चेतते नहीं.

    उत्तम संदेश देती रचना.

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  2. है उनींदा कदम काल की चाल का ,
    साध लो प्रीति की लोरियों से इसे !
    ओ भ्रमित मानवों जा रहा है समय
    बाँध लो कर्म की डोरियों से इसे !
    बहुत बढ़िया रचना
    साभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  3. समय का महत्त्व दर्शाती बहुत सुंदर रचना |
    आशा

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  4. आज ऐसी रचनाएं दुर्लभ हैं, पढवाने के लिए आपका आभार !

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. भेंट दो व्यर्थ की भ्रान्तियाँ शान्ति से ,
    क्या मिलेगा तुम्हें नित्य की क्रान्ति से ,
    यह न जीवन किसी का अमर है यहाँ
    जगमगा दो जगत कर्म की क्रान्ति से !

    कर्म की क्रान्ति ही सबसे महत्वपूर्ण है...
    सार्थक कविता

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  7. है उनींदा कदम काल की चाल का ,
    साध लो प्रीति की लोरियों से इसे !
    ओ भ्रमित मानवों जा रहा है समय
    बाँध लो कर्म की डोरियों से इसे !

    समय की चाल को बताती सुन्दर रचना ...बहुत सुन्दर सन्देश दे रही है ...कर्म के धर्म को महत्त्व दे रही है ..

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  8. लाजवाब अभिव्यक्ति भावनाओं की।
    आभार साधना जी।

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  9. बंद कर दो यह नरमेध बेकार है ,
    ज़िंदगी का सहारा अरे प्यार है ,
    है इसीमें वतन की सुरक्षा निहित
    नाश का मन्त्र यह विश्व संहार है !
    बहुत सुन्दर सार्थक प्रेरना देती रचना
    धन्यवाद।

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  10. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच

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  11. बहुत सुन्दर सन्देश
    ऐसी रचनाएं.... पढवाने के लिए आपका आभार !

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  12. कुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 15 दिनों से ब्लॉग से दूर था
    इसी कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका !

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