मंगलवार, 5 जुलाई 2011

कहो क्यों कर बैठे हो मान

माँ की रचनाओं में से आज मैंने एक बहुत पुरानी रचना चुनी है ! इसका सृजन काल भारत के स्वतंत्र होने से पूर्व का है ! उस समय एक आम भारतीय किस विवशता, व्याकुलता एवं पीड़ा के मानस को भोग रहा था यह कविता उस वेदना को बड़े ही सशक्त तरीके से अभिव्यंजित करती है ! आशा है इस कविता का रसास्वादन आप सभी इसके रचनाकाल को ध्यान में रख कर करेंगे और उस पीड़ा के सहभागी बनेंगे जिसे हर भारतीय ने तब झेला था !


कहो क्यों कर बैठे हो मान !
क्यों रूठे हो हाय बता दो हम तो हैं अनजान !
कहो क्यों कर बैठे हो मान !

पराधीनता में जकड़ी है यह भारत संतान ,
दाने-दाने को तरसे है खोकर सब अभिमान ,
नित्य सहते हैं हम अपमान !
कहो क्यों कर बैठे हो मान !

धन, वैभव, विद्या, बल, पौरुष पहुँचे इंग्लिस्तान ,
बुद्धि हुई है भ्रष्ट हमारी हृदय हुआ अज्ञान ,
बिसारा दया, धर्म अरु दान !
कहो क्यों कर बैठे हो मान !

मृतक समान पड़े हैं हम सब खोकर जन, धन, मान ,
बस केवल उन्नति की आशा बचा रही है प्राण ,
हाय कब आओगे भगवान !
कहो क्यों कर बैठे हो मान !

यदि अनजाने हुआ दयामय हमसे कुछ नुकसान ,
क्षमा करो अपराध कृपा कर विवश ना हो अवसान ,
कृपा कर दो स्वतन्त्रता दान !
कहो क्यों कर बैठे हो मान !


किरण




19 टिप्‍पणियां:

  1. यदि अनजाने हुआ दयामय हमसे कुछ नुकसान ,
    क्षमा करो अपराध कृपा कर विवश ना हो अवसान

    बेहतरीन.

    सादर

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  2. स्वतंत्रता से पहले की रचना पढने का सौभाग्य मिला ... उस समय कैसी व्यथा होगी मन में यह शब्दों से स्पष्ट हो रहा है ... बहुत सुन्दर रचना ...

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  3. कितने आकुल मन से सबने स्वतंत्रता की कामना की थी...
    और क्या हाल कर दिया हमने अपने पुरखों के बलदान का...
    काश इसका मान रख सकें हम सब.

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  4. उस हालात का सटीक चित्रण किया है।

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  5. तब के जीवन की सोच और विचार कितने अलग थे? हम उन पलों के मोल को कहाँ समझ सके हैं और आज के लोगों ने तो उसका मखौल बना कर रख दिया है.

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  6. स्वतंत्रता पूर्व आम आदमी की अभिव्यक्ति इस कविता के माध्यम से मिली..
    अति सुन्दर

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. धन, वैभव, विद्या, बल, पौरुष पहुँचे इंग्लिस्तान ,
    बुद्धि हुई है भ्रष्ट हमारी हृदय हुआ अज्ञान ,
    बिसारा दया, धर्म अरु दान !
    कहो क्यों कर बैठे हो मान !..
    बहुत ही भावुक प्रस्तुति विवशता किन्तु एक वैभवशाली परंपरा को समेटे.....सादर !!!

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  9. बड़ी ही प्रभावी कविता, आभार पढ़वाने का।

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  10. कालजयी कविता |बहुत प्रभावशाली |
    आशा

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  11. सच है अब भगवान को दुबारा आना पढ़ेगा ... प्रभावशाली रचना है ..

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  12. अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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  13. स्वतन्त्रता पूर्व की मनोदशा को रेखांकित करती अभिव्यक्ति को पढना, महसूस करना अपने आप में सम्मान है.... आपका आभार...
    सादर...

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