कहो क्यों कर बैठे हो मान !
क्यों रूठे हो हाय बता दो हम तो हैं अनजान !
कहो क्यों कर बैठे हो मान !
पराधीनता में जकड़ी है यह भारत संतान ,
दाने-दाने को तरसे है खोकर सब अभिमान ,
नित्य सहते हैं हम अपमान !
कहो क्यों कर बैठे हो मान !
धन, वैभव, विद्या, बल, पौरुष पहुँचे इंग्लिस्तान ,
बुद्धि हुई है भ्रष्ट हमारी हृदय हुआ अज्ञान ,
बिसारा दया, धर्म अरु दान !
कहो क्यों कर बैठे हो मान !
मृतक समान पड़े हैं हम सब खोकर जन, धन, मान ,
बस केवल उन्नति की आशा बचा रही है प्राण ,
हाय कब आओगे भगवान !
कहो क्यों कर बैठे हो मान !
यदि अनजाने हुआ दयामय हमसे कुछ नुकसान ,
क्षमा करो अपराध कृपा कर विवश ना हो अवसान ,
कृपा कर दो स्वतन्त्रता दान !
कहो क्यों कर बैठे हो मान !
किरण
क्यों रूठे हो हाय बता दो हम तो हैं अनजान !
कहो क्यों कर बैठे हो मान !
पराधीनता में जकड़ी है यह भारत संतान ,
दाने-दाने को तरसे है खोकर सब अभिमान ,
नित्य सहते हैं हम अपमान !
कहो क्यों कर बैठे हो मान !
धन, वैभव, विद्या, बल, पौरुष पहुँचे इंग्लिस्तान ,
बुद्धि हुई है भ्रष्ट हमारी हृदय हुआ अज्ञान ,
बिसारा दया, धर्म अरु दान !
कहो क्यों कर बैठे हो मान !
मृतक समान पड़े हैं हम सब खोकर जन, धन, मान ,
बस केवल उन्नति की आशा बचा रही है प्राण ,
हाय कब आओगे भगवान !
कहो क्यों कर बैठे हो मान !
यदि अनजाने हुआ दयामय हमसे कुछ नुकसान ,
क्षमा करो अपराध कृपा कर विवश ना हो अवसान ,
कृपा कर दो स्वतन्त्रता दान !
कहो क्यों कर बैठे हो मान !
किरण
यदि अनजाने हुआ दयामय हमसे कुछ नुकसान ,
जवाब देंहटाएंक्षमा करो अपराध कृपा कर विवश ना हो अवसान
बेहतरीन.
सादर
स्वतंत्रता से पहले की रचना पढने का सौभाग्य मिला ... उस समय कैसी व्यथा होगी मन में यह शब्दों से स्पष्ट हो रहा है ... बहुत सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंbahur hi badhiyaa
जवाब देंहटाएंकितने आकुल मन से सबने स्वतंत्रता की कामना की थी...
जवाब देंहटाएंऔर क्या हाल कर दिया हमने अपने पुरखों के बलदान का...
काश इसका मान रख सकें हम सब.
बलदान = बलिदान
जवाब देंहटाएंउस हालात का सटीक चित्रण किया है।
जवाब देंहटाएंतब के जीवन की सोच और विचार कितने अलग थे? हम उन पलों के मोल को कहाँ समझ सके हैं और आज के लोगों ने तो उसका मखौल बना कर रख दिया है.
जवाब देंहटाएंaapki kavita ka prerna-strot bhi yahi kavita lagti hai. sunder chitran.
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता पूर्व आम आदमी की अभिव्यक्ति इस कविता के माध्यम से मिली..
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंधन, वैभव, विद्या, बल, पौरुष पहुँचे इंग्लिस्तान ,
जवाब देंहटाएंबुद्धि हुई है भ्रष्ट हमारी हृदय हुआ अज्ञान ,
बिसारा दया, धर्म अरु दान !
कहो क्यों कर बैठे हो मान !..
बहुत ही भावुक प्रस्तुति विवशता किन्तु एक वैभवशाली परंपरा को समेटे.....सादर !!!
behtreen abhivakti....
जवाब देंहटाएंबड़ी ही प्रभावी कविता, आभार पढ़वाने का।
जवाब देंहटाएंकालजयी कविता |बहुत प्रभावशाली |
जवाब देंहटाएंआशा
सच है अब भगवान को दुबारा आना पढ़ेगा ... प्रभावशाली रचना है ..
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली कविता,
जवाब देंहटाएंआभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
हालात का सटीक चित्रण किया है।
जवाब देंहटाएंअस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
जवाब देंहटाएंआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
स्वतन्त्रता पूर्व की मनोदशा को रेखांकित करती अभिव्यक्ति को पढना, महसूस करना अपने आप में सम्मान है.... आपका आभार...
जवाब देंहटाएंसादर...