विद्युत की गर्जन, मारुत का झोंका और झमेला !
बीहड़ वन है, नदी भयानक, बाधाओं का मेला ,
नगर अगम्य, डगर अनजानी, तू चल पड़ा अकेला !
रुक न सकोगे बोलो कैसी चलने की मजबूरी ,
राही तेरे प्रेमनगर की मंजिल की क्या दूरी !
सिसक रही हैं कहीं किसीके पागलपन की चाहें ,
टूटी साँसों की सीमा में कहीं तड़पती आहें !
फ़ैली ही रह गयीं युगों जाने कितनी ही बाहें ,
कहीं कराहें, कस कर रोतीं कहीं निराश निगाहें !
टूटे दिल हैं बिछे, बिछी हैं कितनी आँखें गीली !
राही तेरे प्रेमनगर की पगडंडी पथरीली !
वहाँ उमंगों में सरिता है, धुन में है परवाना ,
कंठों में चातक रागों में रट कर एक तराना !
आँखों में गतिहीन चकोरी, मन मयूर मनमाना ,
अरमानों में अपने को ही अपने आप मिटाना !
पीड़ा का मधुमास वहाँ है, आँसू की बरसातें ,
राही तेरे प्रेमनगर की बड़ी मनोरम बातें !
कोई किसको अपना समझे, समझे किसे पराया ,
आया जिसका ध्यान, जिसे भी जी चाहा अपनाया !
जाने किसने किस जादू का कैसा जाल बिछाया ,
वहाँ जेठ की दोपहरी है, किन्तु न कोई छाया !
प्राणों में है प्यास, रगों में मृगतृष्णा का पानी ,
राही तेरे प्रेमनगर की कैसी अजब कहानी !
उमड़ उठीं सूखी सरितायें, उमड़ा सागर खारा ,
हरियाली के ऊपर उठ कर अपना पंख पसारा !
नीरस मरु के आँगन में भी उमड़ उठी जलधारा,
किन्तु वहीं क्यों कबका प्यासा वह पंछी बेचारा !
टेक निबाहे, पीना चाहे, एक बूँद को तरसे ,
राही तेरे प्रेमनगर में रिमझिम बादल बरसे !
बह साहस का रक्त अचानक बना पसीना देखा ,
दो गज़ का दिल और वही गज़ भर का सीना देखा !
अरे अमृत की अभिलाषा में विष का पीना देखा ,
मरने में सौ बार खुशी से उसका जीना देखा !
घर जलता है पर घरवाले करते हैं रंगरेली ,
राही तेरे प्रेमनगर की कैसी जटिल पहेली !
एक खेल में इस जीवन का सुखकर सपना देखा ,
एक जाप ही दो प्राणों का मिल कर जपना देखा !
इन सूनी-सूनी आँखों में सुख का सपना होता ,
मैं होता फिर मेरे मन का कोई अपना होता !
कुछ उसकी सुनता, उससे भी कुछ अपनी कह पाता ,
राही तेरे प्रेमनगर में यदि मैं भी रह पाता !
यहाँ हमेशा दीवाली है, यहाँ हमेशा होली ,
मादकता से भरी सभी के उर अंतर की झोली !
'और''और' है और यहाँ है 'पियो''पियो' की बोली ,
किस मस्ती में झूम रही है दीवानों की टोली !
माटी का जीवन भी इसमें बन जाता है सोना ,
राही तेरा प्रेमनगर है कितना सुघर सलोना !
किरण
टूटी साँसों की सीमा में कहीं तड़पती आहें !
फ़ैली ही रह गयीं युगों जाने कितनी ही बाहें ,
कहीं कराहें, कस कर रोतीं कहीं निराश निगाहें !
टूटे दिल हैं बिछे, बिछी हैं कितनी आँखें गीली !
राही तेरे प्रेमनगर की पगडंडी पथरीली !
वहाँ उमंगों में सरिता है, धुन में है परवाना ,
कंठों में चातक रागों में रट कर एक तराना !
आँखों में गतिहीन चकोरी, मन मयूर मनमाना ,
अरमानों में अपने को ही अपने आप मिटाना !
पीड़ा का मधुमास वहाँ है, आँसू की बरसातें ,
राही तेरे प्रेमनगर की बड़ी मनोरम बातें !
कोई किसको अपना समझे, समझे किसे पराया ,
आया जिसका ध्यान, जिसे भी जी चाहा अपनाया !
जाने किसने किस जादू का कैसा जाल बिछाया ,
वहाँ जेठ की दोपहरी है, किन्तु न कोई छाया !
प्राणों में है प्यास, रगों में मृगतृष्णा का पानी ,
राही तेरे प्रेमनगर की कैसी अजब कहानी !
उमड़ उठीं सूखी सरितायें, उमड़ा सागर खारा ,
हरियाली के ऊपर उठ कर अपना पंख पसारा !
नीरस मरु के आँगन में भी उमड़ उठी जलधारा,
किन्तु वहीं क्यों कबका प्यासा वह पंछी बेचारा !
टेक निबाहे, पीना चाहे, एक बूँद को तरसे ,
राही तेरे प्रेमनगर में रिमझिम बादल बरसे !
बह साहस का रक्त अचानक बना पसीना देखा ,
दो गज़ का दिल और वही गज़ भर का सीना देखा !
अरे अमृत की अभिलाषा में विष का पीना देखा ,
मरने में सौ बार खुशी से उसका जीना देखा !
घर जलता है पर घरवाले करते हैं रंगरेली ,
राही तेरे प्रेमनगर की कैसी जटिल पहेली !
एक खेल में इस जीवन का सुखकर सपना देखा ,
एक जाप ही दो प्राणों का मिल कर जपना देखा !
इन सूनी-सूनी आँखों में सुख का सपना होता ,
मैं होता फिर मेरे मन का कोई अपना होता !
कुछ उसकी सुनता, उससे भी कुछ अपनी कह पाता ,
राही तेरे प्रेमनगर में यदि मैं भी रह पाता !
यहाँ हमेशा दीवाली है, यहाँ हमेशा होली ,
मादकता से भरी सभी के उर अंतर की झोली !
'और''और' है और यहाँ है 'पियो''पियो' की बोली ,
किस मस्ती में झूम रही है दीवानों की टोली !
माटी का जीवन भी इसमें बन जाता है सोना ,
राही तेरा प्रेमनगर है कितना सुघर सलोना !
किरण
पीड़ा का मधुमास वहाँ है, आँसू की बरसातें ,
जवाब देंहटाएंराही तेरे प्रेमनगर की बड़ी मनोरम बातें !
बड़ी ख़ूबसूरत पंक्तियों से सजी कविता
आनंद आ गया, पढ़कर
एक खेल में इस जीवन का सुखकर सपना देखा ,
जवाब देंहटाएंएक जाप ही दो प्राणों का मिल कर जपना देखा !
इन सूनी-सूनी आँखों में सुख का सपना होता ,
मैं होता फिर मेरे मन का कोई अपना होता !
बहुत सुंदर पंक्तियाँ....
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
माटी का जीवन भी इसमें बन जाता है सोना ,
जवाब देंहटाएंराही तेरा प्रेमनगर है कितना सुघर सलोना !
वाह ... बहुत खूब ।
बहुत खूब. शुभकामनायें आपको !!
जवाब देंहटाएंटूटे दिल हैं बिछे, बिछी हैं कितनी आँखें गीली !
जवाब देंहटाएंराही तेरे प्रेमनगर की पगडंडी पथरीली !
...बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति..आभार
यहाँ हमेशा दीवाली है, यहाँ हमेशा होली ,
जवाब देंहटाएंमादकता से भरी सभी के उर अंतर की झोली !
'और''और' है और यहाँ है 'पियो''पियो' की बोली ,
किस मस्ती में झूम रही है दीवानों की टोली !
माटी का जीवन भी इसमें बन जाता है सोना ,
राही तेरा प्रेमनगर है कितना सुघर सलोना !
बहुत सुंदर जींवात सी लगती हे यह रचना, धन्यवाद
मन की पीडा शब्दो मे उतर आयी है
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंपढ़ कर आनंद आ गया |"एक खेल में जीवन का सुख सपना देखा ---------कोई अपना होता "बहुत अच्छी पंक्तियाँ |
जवाब देंहटाएंआशा
सिसक रही हैं कहीं किसीके पागलपन की चाहें ,
जवाब देंहटाएंटूटी साँसों की सीमा में कहीं तड़पती आहें !
फ़ैली ही रह गयीं युगों जाने कितनी ही बाहें ,
कहीं कराहें, कस कर रोतीं कहीं निराश निगाहें !
टूटे दिल हैं बिछे, बिछी हैं कितनी आँखें गीली !
राही तेरे प्रेमनगर की पगडंडी पथरीली !
पीड़ा को भी सुन्दर शब्दों में ढालना एक कला है ...बहुत अच्छी प्रस्तुति
प्राणों में है प्यास, रगों में मृगतृष्णा का पानी ,
जवाब देंहटाएंराही तेरे प्रेमनगर की कैसी अजब कहानी !
बहुत ही अच्छी और सुंदर रचना है ।
प्रेम नगर की अजब कहानी भी कम खूबसूरत नहीं ...
जवाब देंहटाएंपीड़ा और प्यास को सुन्दर शब्द खूबसूरत लम्हों में बदल देते हैं !
dil ko bheetar tak bhigo gayi ye rachna. bahut sunder rachna.
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती