जनजीवन ही सस्ता है बस केवल इस संसार में ,
एक अकेली सौदाई है मौत भरे बाज़ार में !
निकल पड़ी है चौराहों पर नंगे भूखों की टोली ,
धू-धू कर जल रही हाट में अरे अभावों की होली ,
घूम रहे सब दिशाहीन से पाने को दो कौर अनाज ,
सरे आम नीलाम हो रही है घर की गृहणी की लाज !
दूध दही की नदियाँ बदलीं विवश अश्रु की धार में ,
एक अकेली सौदाई है मौत भरे बाज़ार में !
गेहूं, जौ, मक्का, चावल के खेत लुटे, रो रहा किसान ,
हर घर में घुस गये लुटेरे, लूट ले गये सब सामान ,
रक्षक ही भक्षक बन बैठे, कुचल रहे हैं जनजीवन ,
कौन सुने फ़रियाद कि कितने घायल हैं हर तन और मन !
घर में चूहे दण्ड पलते, सन्नाटा हर द्वार में ,
एक अकेली सौदाई है मौत भरे बाज़ार में !
जनता के प्रतिनिधि से माँगी पागल प्राणों ने रोटी ,
लाठी, गोली, अश्रु गैस से बिखर गयी बोटी-बोटी ,
खुल कर खेल रही दानवता, सिसक उठी है मानवता ,
सड़कों, गलियों, चौराहों पर कुचली जाती है ममता !
सत्ता के मद में हैं अंधे बैठे जो सरकार में ,
एक अकेली सौदाई है मौत भरे बाज़ार में !
जब-जब माँगा रक्त चंडिका ने आई जनता भोली ,
उस प्यासी खप्पर वाली को दिया रक्त, भर दी झोली ,
फिर भी उसकी प्यास अमिट ही रही, निराली धुन पाई ,
घर के दीपक बलिवेदी पर भेंट चढ़ा कर इतराई !
अजब शान्ति और तृप्ति मिल रही उसको इस अधिकार में ,
एक अकेली सौदाई है मौत भरे बाज़ार में !
किरण
आदरणीय साधना वैद जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
बहुत सशक्त रचना!
......बहुत अच्छी प्रस्तुति
आदरणीया किरण मां जी की स्मृतियों को नमन
जवाब देंहटाएंभारतीय नारी की करुणामय कहानी को कविता के रूप मे प्रभावशाली शब्दों मे लिखा है। अच्छी रचना के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंसत्ता के मद में हैं अंधे बैठे जो सरकार में ,
जवाब देंहटाएंएक अकेली सौदाई है मौत भरे बाज़ार में !
यथार्थ और कटु यथार्थ ...
अंतस को झकझोरती हुई बेहतरीन रचना...
pyari si rachna..........
जवाब देंहटाएंएक बेहद सशक्त रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ही यथार्थ रचना..बधाइयाँ..
जवाब देंहटाएंएक बेहद सशक्त रचना। धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंसशक्त लेखनी का जादू है यह रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
गेहूं, जौ, मक्का, चावल के खेत लुटे, रो रहा किसान ,
जवाब देंहटाएंहर घर में घुस गये लुटेरे, लूट ले गये सब सामान ,
रक्षक ही भक्षक बन बैठे, कुचल रहे हैं जनजीवन ,
कौन सुने फ़रियाद कि कितने घायल हैं हर तन और मन !
हम सब का दर्द झलक रहा हे आप की कविता मे, धन्यवाद
दर्दनाक सच्चाई को व्यक्त करती रचना। मुझे ऐसा याद पडता है कि ज्ञानवती जी को आकाशवाणी रामपुर पर सुना है, क्या मैं सही हूँ?
जवाब देंहटाएंमेरी मम्मी की रचनाएं इन्दौर भोपाल रेडियो स्टेशन से तो अक्सर ही प्रसारित होती थीं ! उन्हें कई जगह से आमंत्रण प्राप्त होते थे ! संभव है उन्होंने कभी रामपुर से भी कोई रचना प्रस्तुत की हो ! लेकिन मेरी स्मृति में नहीं है ! उन दिनों हम भाई बहन आयु में बहुत छोटे थे !
जवाब देंहटाएंरचना की सराहना के लिये आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ !
सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंमनोभावों से ओत प्रोत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंरक्षक ही भक्षक बन बैठे, कुचल रहे हैं जनजीवन ,
जवाब देंहटाएंकौन सुने फ़रियाद कि कितने घायल हैं हर तन और मन !
वक़्त और हालातों की सच्चाईयों को बहुत सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है आपने .....जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो वहां पर न्याय और समानता की बात कैसे की जा सकती है ...बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति
is rachna ko padh kar munchi prem chand ji ke upanyas godan me darshaye gaye haalaat saamne aa gaye.
जवाब देंहटाएंbahut samvedansheel rachna.bahut bahut dhanywad is rachna ko ham tak pahuchane ke liye.
दो ग्रास अनाज को दिशाहीन घूमना सही है विवश अश्रु की घार शब्द का प्रयोग बहुत ही उत्तम । पागल प्राणों व्दारा रोटी की मांग और वदले में बोटी बोटी बिखर जाना सत्य बात ।और घर का दीपक भैट चढा कर इतराना बहुत सटीक । एक उत्तम , यथार्थ को चित्रण करती रचना ा।
जवाब देंहटाएंगेहूं, जौ, मक्का, चावल के खेत लुटे, रो रहा किसान ,
जवाब देंहटाएंहर घर में घुस गये लुटेरे, लूट ले गये सब सामान ,
रक्षक ही भक्षक बन बैठे, कुचल रहे हैं जनजीवन ,
कौन सुने फ़रियाद कि कितने घायल हैं हर तन और मन !
आज भी यह रचना कितनी सार्थक है ...बहुत सुन्दर रचना
बहुत ही सशक्त रचना...
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