रविवार, 21 नवंबर 2010

राह बताता जा रे राही

ओ राही राह बताता जा रे राही !

बीहड़ पंथ डगर अनजानी,
बिजली कड़के बरसे पानी,
नदी भयानक उमड़ रही है,
नाव डलाता जा रे राही !

राह बताता जा रे राही !

मेरी मंजिल बहुत दूर है,
अन्धकार से राह पूर है,
स्नेह चुका जर्जर है बाती,
दीप जलाता जा रे राही !

राह बताता जा रे राही !

चलते-चलते हार गयी रे,
नैनन से जलधार बही रे,
ओ रे निष्ठुर व्यथित हृदय की,
पीर मिटाता जा रे राही !

राह बताता जा रे राही !

रूठे देव मनाऊँ कैसे,
दर्शन उनके पाऊँ कैसे,
मान भरे मेरे अंतर का
मान मिटाता जा रे राही !

राह बताता जा रे राही !
राह बताता जा !

किरण

11 टिप्‍पणियां:

  1. स्नेह चुका जर्जर है बाती,
    दीप जलाता जा रे राही !
    सुन्दर सन्देश .. बहुत सुन्दर रचना

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  2. आपकी इस कविता ने ओ रे माझी मोरे साजन हैं उस पार गीत की याद दिला दी । सुन्दर कविता ।

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  3. "रूठे देव मनाऊं कैसे ----------मां मिटाता जा रे राही "
    बहुत अच्छे मनोंभाव को सर्शाती रचना |अतिउत्तम |
    आशा

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  4. चलते-चलते हार गयी रे,
    नैनन से जलधार बही रे,
    ओ रे निष्ठुर व्यथित हृदय की,
    पीर मिटाता जा रे राही !
    Kya likhti hain aap!Waise to sampoorn rachana nihayat sundar hai!

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  5. बहुत सुन्दर मनोभाव को दर्शाती कविता|

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  6. मेरी मंजिल बहुत दूर है,
    अन्धकार से राह पूर है,
    स्नेह चुका जर्जर है बाती,
    दीप जलाता जा रे राही !

    हर पंक्ति जीवन के सार को कहती हुई ....बहुत सुन्दर रचना ...

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  7. रूठे देव मनाऊँ कैसे,
    दर्शन उनके पाऊँ कैसे,
    मान भरे मेरे अंतर का
    मान मिटाता जा रे राही !
    जब अन्दर का अहं मिट जायेगा ,उसके दर्शन हो जायेंगे। बहुत सुन्दर रचना है बधाई।

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  8. बहुत सुंदर भाव प्रवण रचना..कभी कभी इनसे प्रेरणा पाकर खुद भी ऐसा सृजन करने को उत्साहित हो उठते हैं.

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  9. बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई !

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