ओ राही राह बताता जा रे राही !
बीहड़ पंथ डगर अनजानी,
बिजली कड़के बरसे पानी,
नदी भयानक उमड़ रही है,
नाव डलाता जा रे राही !
राह बताता जा रे राही !
मेरी मंजिल बहुत दूर है,
अन्धकार से राह पूर है,
स्नेह चुका जर्जर है बाती,
दीप जलाता जा रे राही !
राह बताता जा रे राही !
चलते-चलते हार गयी रे,
नैनन से जलधार बही रे,
ओ रे निष्ठुर व्यथित हृदय की,
पीर मिटाता जा रे राही !
राह बताता जा रे राही !
रूठे देव मनाऊँ कैसे,
दर्शन उनके पाऊँ कैसे,
मान भरे मेरे अंतर का
मान मिटाता जा रे राही !
राह बताता जा रे राही !
राह बताता जा !
किरण
स्नेह चुका जर्जर है बाती,
जवाब देंहटाएंदीप जलाता जा रे राही !
सुन्दर सन्देश .. बहुत सुन्दर रचना
आपकी इस कविता ने ओ रे माझी मोरे साजन हैं उस पार गीत की याद दिला दी । सुन्दर कविता ।
जवाब देंहटाएं"रूठे देव मनाऊं कैसे ----------मां मिटाता जा रे राही "
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे मनोंभाव को सर्शाती रचना |अतिउत्तम |
आशा
सुंदर भजन।
जवाब देंहटाएंचलते-चलते हार गयी रे,
जवाब देंहटाएंनैनन से जलधार बही रे,
ओ रे निष्ठुर व्यथित हृदय की,
पीर मिटाता जा रे राही !
Kya likhti hain aap!Waise to sampoorn rachana nihayat sundar hai!
बहुत सुन्दर मनोभाव को दर्शाती कविता|
जवाब देंहटाएंमेरी मंजिल बहुत दूर है,
जवाब देंहटाएंअन्धकार से राह पूर है,
स्नेह चुका जर्जर है बाती,
दीप जलाता जा रे राही !
हर पंक्ति जीवन के सार को कहती हुई ....बहुत सुन्दर रचना ...
रूठे देव मनाऊँ कैसे,
जवाब देंहटाएंदर्शन उनके पाऊँ कैसे,
मान भरे मेरे अंतर का
मान मिटाता जा रे राही !
जब अन्दर का अहं मिट जायेगा ,उसके दर्शन हो जायेंगे। बहुत सुन्दर रचना है बधाई।
kitna sunder likhtin hain aap .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव प्रवण रचना..कभी कभी इनसे प्रेरणा पाकर खुद भी ऐसा सृजन करने को उत्साहित हो उठते हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई !
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