माँ की डायरी में यह मंगल कामना नेहरू जी के जन्म दिवस १४ नवंबर
के दिन उन्हीं को समर्पित की गयी थी ! कदाचित तब देश को नयी-नयी
आज़ादी मिली थी और वे देश के प्रथम प्रधान मंत्री बने थे ! आज उनके
ब्लॉग के माध्यम से ये श्रृद्धा सुमन उनकी ओर से मैं नेहरू जी के पुण्य
स्मरण को समर्पित कर रही हूँ !
साधना
ओ शरद निशे ले आई हो यों अद्भुत सुख भण्डार सखी,
लहराता दसों दिशाओं में आनंद का पारावार सखी,
लो मूक हुई वाणी कैसे अब प्रकट करूँ उद्गार सखी,
सह सकता कैसे दीन हृदय कब इतने सुख का भार सखी !
बिखरा कर मधुर चंद्रिका यह किसका तू है स्वागत करती,
देती बिखेर स्वर्णिम तारे, मानो निर्धन का घर भरती,
मुक्तामय ओस गिरा कर जो बहुमूल्य निछावर तू करती,
किसका इस मदिर पवन द्वारा आराधन आवाहन करती !
कुछ ऊली फूली बढ़ी चली किस ओर अरी जाती सजनी,
द्रुम दल को हिला-हिला हर्षित कल कीर्ति मधुर गाती सजनी,
यदि लाल किले के सुदृढ़ मार्ग की ओर चली जाती सजनी,
तो हृदय कुञ्ज के भाव कुसुम पहुँचा उन तक आती सजनी !
देती बिखेर उन चरणों पर इस तुच्छ हृदय का प्यार सखी,
लेती पखार फिर युगल चरण निर्मल नयनांजलि ढार सखी,
पुलकित उर वीणा की उन तक पहुँचाना यह झंकार सखी,
तेरे स्वर में मिलकर ये स्वर कर उठें मधुर गुंजार सखी !
पृथ्वी जल वायु रहे जब तक गंगा यमुना की धार सखी,
शशि रहे चंद्रिकायुक्त, रवी रहे ज्योती का आगार सखी,
लहराये तिरंगा भारत का सत रज तम हो साकार सखी,
हो सुदृढ़ राष्ट्र की नींव, अखंडित हो स्वतंत्र सरकार सखी !
किरण
बहुत सुन्दर कविता है। आपकी माता जी की कलम को सादर नमन। देती बिखेर उन चरणों पर इस तुच्छ हृदय का प्यार सखी,
जवाब देंहटाएंलेती पखार फिर युगल चरण निर्मल नयनांजलि ढार सखी,
पुलकित उर वीणा की उन तक पहुँचाना यह झंकार सखी,
तेरे स्वर में मिलकर ये स्वर कर उठें मधुर गुंजार सखी !
न्र्हरू जी जैसा देश के लिये त्याग समर्पण शायद ही कहीं देखने को मिले। कल ही नाभा जेल मे उनकी गिरफ्तारी का वृ्ताँत पढ रही थी तो सोच रही थी क्या आज भी ऐसा कोई नेता होगा जो इतने राजसी परिवेश को त्याग कर जैल की इन गन्दी कोठडिओं मे अपनी ज़िन्दगी गालेगा। धन्य थे वो नेता। आज चार शब्द पढ कर सरकारी कुर्सी पर बैठ कर सरकार के समय मे ही नेहरू को गाली देने वाले जरा ये सोचें कि क्या वो अपने जीवन के चन्द घन्टे भी उनकी तरह त्याग कर सकते हैं? आज हम नज़र डालें तो उनके कद का एक भी नेता किसी भी पार्टी मे नही है। केवल आलोचना करने से कुछ लाभ नही उन जैसा बन कर दिखाये कोई। नेहरूजी को मेरी विनम्र श्रद्धाँजली।
बहुत सुन्दर कविता ...सुन्दर भावों से सजी हुई ...
जवाब देंहटाएंलहराये तिरंगा भारत का सत रज तम हो साकार सखी,
हो सुदृढ़ राष्ट्र की नींव, अखंडित हो स्वतंत्र सरकार सखी !
आज के नेताओं ने सब भाव खंडित कर दिए हैं ...
बहुत ही सुन्दर कविता है...पर मन दुखी हो गया पढ़कर....क्या-क्या सपने देखे थे उस समय के लोगों ने...और सब धूल-धूसरित हो गए हैं..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना से आज का दिन मनाया है आपने ..... .. बल दिवस शुभ हो .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबाल दिवस की शुभकामनायें.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (15/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
बहुत सुंदर भाव लिए रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है!
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बाल दिवस की शुभकामनाएँ!
बहुत सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंसही मायनों में बल दिवस की सुंदर भेंट प्रस्तुत की.
जवाब देंहटाएंआभार.
बहुत ही सुन्दर रचना ....प्रस्तुति के लिए आभार
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