बैठूँ या कि जाऊँ मैं हार !
ले समस्त अंतर का प्यार
आई हूँ मैं तेरे द्वार,
सुन्दर भाव कुसुम सुकुमार
करने भेंट अश्रु का हार,
खोल खोल ओ रे करुणामय
अपनी करुण कुटी का द्वार !
बैठूँ या कि जाऊँ मैं हार !
इस जीवन के शीत हेमंत
मम पतझड़ के मधुर वसंत,
तीव्र ग्रीष्म में जल की धार
शीतल तव स्मृति आभार,
निष्ठुर निर्दयता में क्या
पा लोगे अब जीवन का सार !
बैठूँ या कि जाऊँ मैं हार !
व्याकुल उर की क्षीण पुकार
और दीन दुखियों का प्यार,
दया सिंधु वह दया अपार
तुम्हें खींच लाती इस पार,
क्या न तुम्हें कुछ आती करुणा
सुन कर मेरी करुण पुकार !
बैठूँ या कि जाऊँ मैं हार !
किरण
बेहतरीन!
जवाब देंहटाएं"व्याकुल उर की क्षीण पुकार -------तुम्हें खींच लाती इस पार"
जवाब देंहटाएंभावनाओं से ओतप्रोत रचना |सुंदर शब्द चयन |
आशा
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव कुसुम सुकुमार
जवाब देंहटाएंकरने भेंट अश्रु का हार,
खोल खोल ओ रे करुणामय
अपनी करुण कुटी का द्वार !
बैठूँ या कि जाऊँ मैं हार !
जरूर खोलेगा द्वार और खोलना ही पडेगा जब पुकार इतनी करुणाभरी होगी तो कौन ऐसा निष्ठुर होगा जो चुपचाप देखता रहेगा…………बेहद भक्ति भाव से ओत-प्रोत रचना।
व्याकुल उर की क्षीण पुकार
जवाब देंहटाएंऔर दीन दुखियों का प्यार,
दया सिंधु वह दया अपार
तुम्हें खींच लाती इस पार,
क्या न तुम्हें कुछ आती करुणा
सुन कर मेरी करुण पुकार !
बैठूँ या कि जाऊँ मैं हार !
बहुत खूबसूरत छंद बद्ध रचना ....अपार खजाना है आपकी माँ का ...हमें पढवाने के लिए आभार
सुन्दर।
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