शनिवार, 24 जुलाई 2010

* प्यार का आधार *

प्यार तुमसे माँगती हूँ,
माँगने के ही लिये आधार तुमसे माँगती हूँ !

ओस ने रो कर कहा यह यामिनी अपनी नहीं है,
पीत पड़ कर चाँद बोला चाँदनी अपनी नहीं है,
नील नभ के दीप ही दो चार तुमसे माँगती हूँ !
प्यार तुमसे माँगती हूँ !

है नहीं मिट्टी रसीली, जन्म से कंकाल तरु हैं,
शुष्क पत्ते भी न जिनमें, जन्म से कंगाल तरु हैं,
पड़ उन्हीं के बीच आज बहार तुमसे माँगती हूँ !
प्यार तुमसे माँगती हूँ !

द्वार स्वर के और बंधन कण्ठ के भी खोलने का,
दूसरों के बाद हँसने और तुमसे बोलने का,
कुछ नहीं बस एक यह अधिकार तुमसे माँगती हूँ !
प्यार तुमसे माँगती हूँ !

जो सुयश की राह में दो पग उठा कर खो गयी है,
शून्यता की गोद में जिसकी कि प्रतिध्वनि सो गयी है,
बीन की फिर से वही झंकार तुमसे माँगती हूँ !
प्यार तुमसे माँगती हूँ !

दे चुके हो दिल किसीको कह रही धड़कन तुम्हारी,
शेष भी दोगे किसीको कह रही चितवन तुम्हारी,
आज अपना ही दिया उपहार तुमसे माँगती हूँ !
प्यार तुमसे माँगती हूँ !


किरण

9 टिप्‍पणियां:

  1. नारी सशक्तिकरण के युग में कारुणिक याचना भरा निवेदन यद्यपि सामयिक नहीं लगा तथापि भावों की प्रबलता और निर्मल प्यार की सरल प्रस्तुति ने मन को मोह लिया. सच कहूँ तो ऐसेभाव भरे गीतों का आज बहुत ही अभाव है और आपकी यह रचना उस अभाव की पूर्ति करती है. साहित्यिक दृष्टि से भी यह कृति उत्तम है. सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  2. रचना की सराहना के लिये बहुत बहुत धन्यवाद तिवारी जी ! इस कविता का रचनाकाल लगभग पचास साठ वर्ष पूर्व का है इस तथ्य को ध्यान में रख कर यदि आप इसे दोबारा पढ़ेंगे तो शायद अधिक आनंद उठा पायेंगे ! यह कविता मेरी माँ श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना 'किरण' जी द्वारा रचित है ! 'उन्मना' में सारी रचनायें उन्हीं की हैं जिन्हें आप जैसे सहृदय पाठकों के लिये मैं प्रकाशित कर रही हूँ ! एक बार आपका पुन: धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति । इतने समर्पित भाव के होते हुए भी अपनी अस्मिता को बरकरार रखा है अंतिम चरण में । बधाई आपको कि आप अपनी माँ की रचनाएँ पढवा रही हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  4. भावपूर्ण प्रस्तुति |बहुत अच्छी रचना
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  5. ओस ने रो कर कहा यह यामिनी अपनी नहीं है,
    पीत पड़ कर चाँद बोला चाँदनी अपनी नहीं है,

    माँ की रचनाओं में बस खो जाने का मन होता है....हर रचना अद्वितीय होती है....आपका आभार जो आप हमें पढ़ने का मौका दे रही हैं..

    जवाब देंहटाएं
  6. ओस ने कहा रागिनी अपनी नहीं .
    चाँद की चांदनी भी अपनी नहीं ..
    दूसरों के बाद हँसने और तुमसे बोलने का,
    कुछ नहीं बस एक यह अधिकार तुमसे माँगती हूँ ! ...
    बस प्यार मांगती हूँ ...
    सब कुछ तो मांग लिया ....
    आभार इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए ...!

    जवाब देंहटाएं
  7. बस प्यार मांगती हूँ ...
    सब कुछ तो मांग लिया ....
    आभार इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए ...!

    जवाब देंहटाएं