शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

अनगाये रह गए गीत

रात रूठती रही मिलन की
दिवस विरह के मुस्काये,
अनगाये रह गये गीत
संध्या के केश बिखर आये !

शून्य ह्रदय, मंदिर के दीपक
बिना स्नेह के सिसक उठे,
चले गए जब देव, लाज तज
प्रिय दर्शन को पलक उठे !

छंद प्यार के रहे उपेक्षित
भाव व्यथा के टकराये !
अनगाये रह गये गीत
संध्या के केश बिखर आये !

मचल पड़े निर्झर नयनों के
आहों के तूफ़ान उठे,
चिता जली जब आशाओं की
सिर धुनते अरमान उठे !

तरिणी तट पर ही जब डूबी
कौन पार फिर ले जाये !
अनगाये रह गये गीत
संध्या के केश बिखर आये !

जनम-जनम की संगिनी पीड़ा
विश्वासों के साथ चली,
साध ह्रदय की रही तरसती
क्रूर नियति से गयी छली !

अस्त व्यस्त टूटी वीणा के
तार न फिर से जुड पाये !
अनगाये रह गये गीत
संध्या के केश बिखर आये !


किरण

5 टिप्‍पणियां:

  1. अस्त व्यस्त टूटी वीणा के
    तार न फिर से जुड पाये !
    अनगाये रह गये गीत
    संध्या के केश बिखर आये !
    Sampoorn rachana sundar hai..sach kaha,jeevan me kitne hee geet mook rah jate hain..

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  2. बहुत सुन्दर भाव पूर्ण अभिब्यक्ति |
    आशा

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  3. इतना ही कह सकती हूँ की आह निकल गयी यह रचना पढ़ कर..मानो मेरे मन की सी कह दी हो.

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  4. बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार

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