खो चुकी हूँ आज अपने आपका अपनत्व री सखि !
आज प्राणों में कसक है, ह्रदय में पीड़ा घनेरी,
नयन वारिद उमड़ आये, भर निराशा की अँधेरी,
धुल चुके अरमान सारे जल चुका है ममत्व री सखि !
खो चुकी हूँ आज अपने आपका अपनत्व री सखि !
आज सरिता की लहर सा रह गया है गान मेरा,
क्षितिज तट की क्षीण रेखा सा रहा अभिमान मेरा,
कब बनी हूँ, कब मिटूँगी, क्या रहा मम सत्व री सखि !
खो चुकी हूँ आज अपने आपका अपनत्व री सखि !
बाल रवि की कान्त किरणों सा हुआ उत्थान मेरा,
अस्त रवि की क्षीण रेखा सा रहा अवसान मेरा,
आज बन कर मिट चुकी मैं, लुट चुका अस्तित्व री सखि !
खो चुकी हूँ आज अपने आप का अपनत्व री सखि !
किरण
"बाल रवि की कान्त किरणों सा हुआ उत्थान मेरा -----"
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव |
आशा
आज सरिता की लहर सा रह गया है गान मेरा,
जवाब देंहटाएंक्षितिज तट की क्षीण रेखा सा रहा अभिमान मेरा सुंदर अभिव्यक्ति ,शुभकामनायें
बाल रवि की कान्त किरणों सा हुआ उत्थान मेरा,
जवाब देंहटाएंअस्त रवि की क्षीण रेखा सा रहा अवसान मेरा,
आज बन कर मिट चुकी मैं, लुट चुका अस्तित्व री सखि !
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ....आभार
अस्त रवि की क्षीण रेखा सा रहा अवसान मेरा,
जवाब देंहटाएंआज बन कर मिट चुकी मैं, लुट चुका अस्तित्व री सखि !
अस्तित्वविहीन होने का दुःख शब्दों में ढल गया ...
भावुक कर दिया कविता ने ...!
आज प्राणों में कसक है, ह्रदय में पीड़ा घनेरी,
जवाब देंहटाएंनयन वारिद उमड़ आये, भर निराशा की अँधेरी,
धुल चुके अरमान सारे जल चुका है ममत्व री सखि !
खो चुकी हूँ आज अपने आपका अपनत्व री सखि !
आपकी रचना पढ कर आँखें भर आयी आज सुबह से ही कुछ ऐसी सोचें मन मे आ रही थी। धन्यवाद साधना जी।
आज सरिता की लहर सा रह गया है गान मेरा,
जवाब देंहटाएंक्षितिज तट की क्षीण रेखा सा रहा अभिमान मेरा,
कब बनी हूँ, कब मिटूँगी, क्या रहा मम सत्व री सखि !
साधना जी,
अत्यंत गंभीरता पुर्वक की गई साधना में अंतरस्थ होती आत्मसुधा (सत्व) का अनुभव सिमेटे हुए आपका गीत प्रभावशाली है..
महादेवी की कसक अभी भी ताजा है , प्रस्फुटित होती आपके गीतों में..
बधाई स्वीकार करें...
करुना से ओत प्रोत कविता...एक एक शब्द मन की गहरी संवेदनाओं को दर्शा रहा है. मन द्रवित हो गया. बहुत बहुत खूबसूरत कविता.
जवाब देंहटाएंदुःख हें की मैंने इसे देरी से पढ़ा....वर्ना इसे आज के चर्चा मंच पर लेती.
क्षमा प्रार्थी हूँ.
बहुत ही सुन्दर कविता खुबसुरत शब्दों के सयोजन के साथ |
जवाब देंहटाएंसाधनाजी
आपने जो माताजी का चित्र दिया है उन्हें मै प्रणाम करती हूँ |
क्या मै जान सकती हूँ ?की ये पंक्तिया क्या माताजी द्वारा लिखित है ?
इस देश में जन्मे हो तुम
जननी का कर्ज चुकाओ ...
गांधीजी के पद चिन्हों पर
कदम बढ़ते जाओ |
धन्यवाद
शोभनाजी आपको रचना पसंद आई और आपने उसकी सराहना की इसके लिये आभारी हूँ ! मेरी मम्मी के जीवन काल में उनका एक कहानी संग्रह 'पतझड़ के पात' तो प्रकाशित हुआ था लेकिन कोई काव्य संग्रह प्रकाशित नहीं हुआ था ! उनकी रचनायें पत्र पत्रिकाओं में छपती रहती थीं ! उनके देहांत के भी कई वर्षों के बाद मैंने उनकी रचनाओं की जो पांडुलिपियाँ मुझे मिल सकीं उन्हें चार पुस्तकों के रूप में संकलित कर प्रकाशित किया है ! सारी रचनायें कंठस्थ भी नहीं हैं ! इसलिए मैं यह कह सकने में मैं नितांत असमर्थ हूँ कि ये पंक्तियाँ उनकी लिखी हुई हैं या नहीं ! उनकी रचनाओं को मैं पुन: ध्यान से पढूंगी ! आपके अनुग्रह के लिये हार्दिक धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबहुत पसन्द आया
जवाब देंहटाएंहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
बहुत सुन्दर!
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