शनिवार, 3 दिसंबर 2011

उस पार


नभ गंगा की चारु चमक में
देख सखी एकांत विचार ,
पीत वसन, धर अधर मुरलिका
रख कर गौ पर कर का भार !

बने त्रिभंगी सुना रहे कुछ
अर्जुन को अर्जुन के गीत ,
तभी उठ रहा तारक द्युति से
मधुर-मधुर मधुमय संगीत !

यह जगमग आधीन पार्थ है
प्राणी तो बस साधन है ,
भ्रम है, व्यर्थ मोह है जग में
क्षण स्थाई जीवन है !

इसी भाँति संसृति के क्रम में
जीवन धन हैं बता रहे ,
भूले पथ पर चलने वालों को
सुराह हैं बता रहे !

हम भी भूले हैं पथ सजनी
भूले प्रियतम करुणागार ,
चलो ढूँढने चलें , "कहाँ ?"
"इस नभ गंगा के भी उस पार !"


किरण

23 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर!
    इस ब्लॉग पर प्रस्तुत की गयी हर रचना अद्भुत होती है... हम हमेशा ही अभिभूत होते हैं!
    सादर!

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  2. यह जगमग आधीन पार्थ है
    प्राणी तो बस साधन है ,
    भ्रम है, व्यर्थ मोह है जग में
    क्षण स्थाई जीवन है !

    सब कुछ तो कृष्णमय ही है ... बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  3. बेहद सुन्दर शब्दों का समिश्रण ...!
    बेहतरीन प्रस्तुति..!
    आभार !

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  4. खूबसूरत.... जय श्री कृष्ण....
    सादर....

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  5. आभार अत्यंत सुंदर रचना को पढवाने के लिए !

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  6. भावपूर्ण कविता के लिए आभार.....

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  7. वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  8. इन में छंद छुपे हुये हैं साधना जी, थोड़ा प्रयास कर के इन रचनाओं को उन के छंदों का नाम देना अधिक अच्छा रहेगा

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  9. maine to jis din blog jagat se naata joda tha usi din yah mahshoosh kiya tha kee yaha do tarah ke blog hain..pahle wo jo prayog shalaon kee tarah hain..dusre jo vyakhyan kaksh kee tarah...yah blog un kuch blogs me se hai jahan chup rahkar seekhna hota hai..main to hamesh hee inhe padhne ka lutf uthataa hoon..aaur comment karna bhee jaruri nahi samjhta ...sachaayee to yah hai harbhajan hokar sachin ko baiting nahi sikha satah ..na hee bata sakta hoon kee sachin kahan galat khele baithe the

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