शनिवार, 17 दिसंबर 2011

आशा

देव ! तुम्हारा ध्यान हृदय में कई बार आता ,
नयी इक ज्योति जगा जाता ,
मान का कमल खिला जाता ,
योजना नयी बना जाता ,
दे जाता है अहा हृदय को वह सांत्वना महान ,
भूल जाती हूँ दुःख अपमान !

निराशा होती जीवन में ,
दुःख हो जाता है मन में ,
रोग लग जाते हैं तन में ,
तेल घटता है क्षण-क्षण में ,
तभी शीघ्र आ जाता प्रियतम अहा तुम्हारा ध्यान ,
फूल उठता है हृदयोद्यान !


किरण

18 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर और भाव पूर्ण रचना
    आशा

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  2. namste mausiji,sundar abhivyakti hae.man ka dar aur us par vijay pane ka madhyam bhi khud hi talash liya.....

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  3. प्रेम की शक्ति को नमन है ... सुन्दर रचना है ...

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  4. सार्थक सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
    सादर...

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  5. बहुत भावपूर्ण प्रभावी प्रस्तुति..

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  6. बहुत सुन्दर भावपू्र्ण प्रभावित करती रचना ...मेरी नई पोस्ट 'कर्म ही जीवन है' में आप का स्वागत है...

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