देव ! तुम्हारा ध्यान हृदय में कई बार आता ,
नयी इक ज्योति जगा जाता ,
मान का कमल खिला जाता ,
योजना नयी बना जाता ,
दे जाता है अहा हृदय को वह सांत्वना महान ,
भूल जाती हूँ दुःख अपमान !
निराशा होती जीवन में ,
दुःख हो जाता है मन में ,
रोग लग जाते हैं तन में ,
तेल घटता है क्षण-क्षण में ,
तभी शीघ्र आ जाता प्रियतम अहा तुम्हारा ध्यान ,
फूल उठता है हृदयोद्यान !
किरण
बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर और भाव पूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंआशा
सुन्दर भाव संयोजन्।
जवाब देंहटाएंमन को पथ दिखलाता प्यारा।
जवाब देंहटाएंnamste mausiji,sundar abhivyakti hae.man ka dar aur us par vijay pane ka madhyam bhi khud hi talash liya.....
जवाब देंहटाएंप्रेम की शक्ति को नमन है ... सुन्दर रचना है ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंसादर
priyetam ka dhyan aur man ke avsaado par man ke uthte eshsason ko sunderta se bayan kiya he.
जवाब देंहटाएंप्रभावित करती रचना ...
जवाब देंहटाएंsundar rachna...aabhar
जवाब देंहटाएंwelcome to my blog :)
सार्थक सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंसादर...
बहुत भावपूर्ण प्रभावी प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपू्र्ण प्रभावित करती रचना ...मेरी नई पोस्ट 'कर्म ही जीवन है' में आप का स्वागत है...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव...
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंsundar bhavabhivykti.....
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