शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

साध

लेकर के उर में एक साध !

मैं आई तेरे द्वार आज
पूरण कर मेरी अमिट चाह ,
सुस्मित अधरों से एक बार
दे बहा मधुर ध्वनि का प्रवाह ,

भर जाये प्रेम सागर अगाध !
कर पूरण मेरी अमर साध !

ऐसा मृदु मंजुल राग बजा ,
अविराम अचल अविरल अनंत ,
नीरस जग जीवन में फिर से
छा जाये कुसुमित नव वसन्त ,

मिट जावे जग से चिर विवाद !
कर पूरण मेरी अमर साध !

वन-वन उपवन गृह नगर-डगर
सौरभमय जिससे दिग्दिगंत ,
वितरित कर अपनी मलय पवन
सुरभित श्वांसों से रे अनंत ,

रे नहीं तुझे कुछ भी असाध !
कर पूरण मेरी अमर साध !

जग नयनों की जलधारा से
कर लेता तेरे पग पखार ,
जग की आहें बन कर पराग
पहुँचें तुझ तक कर क्षितिज पार ,

निर्विघ्न चली जायें अबाध !
कर पूरण मेरी अमर साध !

हो जाये तरल तेरी करुणा
दुखियों पर बरबस पड़े बरस ,
लहलहा उठें सूखे जीवन
हो जायें मधुर, हो उठें सरस ,

निर्जीव बने नैराश्य व्याध !
कर पूरण मेरी अमर साध !

आनंद प्रेम से मतवाली
फिर चहक उठे दुनिया भोली ,
करुणामय करुणा कर इतनी
भर दे मेरी रीती झोली ,

मैं आई लेकर एक साध !
कर पूरण मेरी अमर साध !


किरण

18 टिप्‍पणियां:

  1. अद्भुत प्रस्तुति
    सुंदर रचना को पढवाने के लिए....आभार

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  2. निर्जीव बने नैराश्य व्याध !
    कर पूरण मेरी अमर साध !
    prabhawshali

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  3. बहुत खूब! उत्कृष्ट भावमयी प्रस्तुति..

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  4. behtarin rachna...param satta se annya prem pradarshit karti sunder kriti...sadar badhayee aaur apne blog par amantran ke saht

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  5. हो जाये तरल तेरी करुणा
    दुखियों पर बरबस पड़े बरस ,
    लहलहा उठें सूखे जीवन
    हो जायें मधुर, हो उठें सरस ,

    बहुत ही सुन्दर भाव....सरस कविता

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  6. हो जाये तरल तेरी करुणा
    दुखियों पर बरबस पड़े बरस ,
    लहलहा उठें सूखे जीवन
    हो जायें मधुर, हो उठें सरस ,

    उत्तम भाव और प्रस्तुति ...

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  7. साध को पूर्ण करने का आग्रह ..अद्भुत शब्द संयोजन .. भावमयी रचना

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  8. सुन्दर मधुर ... कमाल का शब्द संयोजन मिलता है आपकी रचनाओं में हमेशा ...

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  9. हो जाये तरल तेरी करुणा
    दुखियों पर बरबस पड़े बरस ,
    लहलहा उठें सूखे जीवन
    हो जायें मधुर, हो उठें सरस ,

    निर्जीव बने नैराश्य व्याध !
    कर पूरण मेरी अमर साध !

    अद्भुत...........

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  10. मिट जावे जग से चिर विवाद !
    कर पूरण मेरी अमर साध !
    नेकदिल की साफगोई ऐसी ही साध रखा करती है ...
    सार्थक अभिव्यक्ति !

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