लेकर के उर में एक साध !
मैं आई तेरे द्वार आज
पूरण कर मेरी अमिट चाह ,
सुस्मित अधरों से एक बार
दे बहा मधुर ध्वनि का प्रवाह ,
भर जाये प्रेम सागर अगाध !
कर पूरण मेरी अमर साध !
ऐसा मृदु मंजुल राग बजा ,
अविराम अचल अविरल अनंत ,
नीरस जग जीवन में फिर से
छा जाये कुसुमित नव वसन्त ,
मिट जावे जग से चिर विवाद !
कर पूरण मेरी अमर साध !
वन-वन उपवन गृह नगर-डगर
सौरभमय जिससे दिग्दिगंत ,
वितरित कर अपनी मलय पवन
सुरभित श्वांसों से रे अनंत ,
रे नहीं तुझे कुछ भी असाध !
कर पूरण मेरी अमर साध !
जग नयनों की जलधारा से
कर लेता तेरे पग पखार ,
जग की आहें बन कर पराग
पहुँचें तुझ तक कर क्षितिज पार ,
निर्विघ्न चली जायें अबाध !
कर पूरण मेरी अमर साध !
हो जाये तरल तेरी करुणा
दुखियों पर बरबस पड़े बरस ,
लहलहा उठें सूखे जीवन
हो जायें मधुर, हो उठें सरस ,
निर्जीव बने नैराश्य व्याध !
कर पूरण मेरी अमर साध !
आनंद प्रेम से मतवाली
फिर चहक उठे दुनिया भोली ,
करुणामय करुणा कर इतनी
भर दे मेरी रीती झोली ,
मैं आई लेकर एक साध !
कर पूरण मेरी अमर साध !
किरण
मैं आई तेरे द्वार आज
पूरण कर मेरी अमिट चाह ,
सुस्मित अधरों से एक बार
दे बहा मधुर ध्वनि का प्रवाह ,
भर जाये प्रेम सागर अगाध !
कर पूरण मेरी अमर साध !
ऐसा मृदु मंजुल राग बजा ,
अविराम अचल अविरल अनंत ,
नीरस जग जीवन में फिर से
छा जाये कुसुमित नव वसन्त ,
मिट जावे जग से चिर विवाद !
कर पूरण मेरी अमर साध !
वन-वन उपवन गृह नगर-डगर
सौरभमय जिससे दिग्दिगंत ,
वितरित कर अपनी मलय पवन
सुरभित श्वांसों से रे अनंत ,
रे नहीं तुझे कुछ भी असाध !
कर पूरण मेरी अमर साध !
जग नयनों की जलधारा से
कर लेता तेरे पग पखार ,
जग की आहें बन कर पराग
पहुँचें तुझ तक कर क्षितिज पार ,
निर्विघ्न चली जायें अबाध !
कर पूरण मेरी अमर साध !
हो जाये तरल तेरी करुणा
दुखियों पर बरबस पड़े बरस ,
लहलहा उठें सूखे जीवन
हो जायें मधुर, हो उठें सरस ,
निर्जीव बने नैराश्य व्याध !
कर पूरण मेरी अमर साध !
आनंद प्रेम से मतवाली
फिर चहक उठे दुनिया भोली ,
करुणामय करुणा कर इतनी
भर दे मेरी रीती झोली ,
मैं आई लेकर एक साध !
कर पूरण मेरी अमर साध !
किरण
अद्भुत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना को पढवाने के लिए....आभार
निर्जीव बने नैराश्य व्याध !
जवाब देंहटाएंकर पूरण मेरी अमर साध !
prabhawshali
साध आपकी पूरी होगी...
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुतिकरण
जवाब देंहटाएंअति उत्तम रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब! उत्कृष्ट भावमयी प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंWaah Behtareen Prastuti...
जवाब देंहटाएंAabhaar !
वाह ...बहुत ही बढि़या।
जवाब देंहटाएंbehtarin rachna...param satta se annya prem pradarshit karti sunder kriti...sadar badhayee aaur apne blog par amantran ke saht
जवाब देंहटाएंहो जाये तरल तेरी करुणा
जवाब देंहटाएंदुखियों पर बरबस पड़े बरस ,
लहलहा उठें सूखे जीवन
हो जायें मधुर, हो उठें सरस ,
बहुत ही सुन्दर भाव....सरस कविता
हो जाये तरल तेरी करुणा
जवाब देंहटाएंदुखियों पर बरबस पड़े बरस ,
लहलहा उठें सूखे जीवन
हो जायें मधुर, हो उठें सरस ,
उत्तम भाव और प्रस्तुति ...
adbhut prastuti. aabhar is rachna ko ham tak pahunchane k liye.
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति.....
जवाब देंहटाएंसाध को पूर्ण करने का आग्रह ..अद्भुत शब्द संयोजन .. भावमयी रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर मधुर ... कमाल का शब्द संयोजन मिलता है आपकी रचनाओं में हमेशा ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना बढ़िया प्रस्तुति.......
जवाब देंहटाएंनए पोस्ट के लिए "काव्यान्जलि" बेटी और पेड़ मे
हो जाये तरल तेरी करुणा
जवाब देंहटाएंदुखियों पर बरबस पड़े बरस ,
लहलहा उठें सूखे जीवन
हो जायें मधुर, हो उठें सरस ,
निर्जीव बने नैराश्य व्याध !
कर पूरण मेरी अमर साध !
अद्भुत...........
मिट जावे जग से चिर विवाद !
जवाब देंहटाएंकर पूरण मेरी अमर साध !
नेकदिल की साफगोई ऐसी ही साध रखा करती है ...
सार्थक अभिव्यक्ति !