दूर क्षितिज के धूमिल तट पर देखो तो सजनी उस पार ,
देख रहा है अरे चमकता शुचि सुन्दर सा किसका द्वार !
अरी कौन आता पागल सा बता रहा जो सुन्दर रीत ,
उस अभिनव मंदिर से किसकी स्तुति में गाता सा गीत !
ठहरो! सुनो, कह रहा वह क्या "हैं! यह है कैसा संगीत !
अरी रहा सारी संसृति को अपनी स्वर लहरी से जीत "!
दीवानी दुनिया के प्राणी सुनो सुनो कुछ देकर ध्यान ,
व्यर्थ भटकते क्यों माया में गाओ प्रियतम का गुणगान !
आओ चलो प्रेम मंदिर तक, प्रेम देव के चरणों तक ,
सेवा, स्नेह, हृदय, यह जीवन बलि कर दो स्वर्णिम सुख तक !
सजनि ! पथिक के राग सुनो कैसा सुन्दर उपदेश अरे !
करने प्रेम देव की पूजा जग से यदि हो जायें परे !
तो सजनी चल के ढूँढें अब पावन उस प्रियतम का द्वार ,
चलो चलें उस ओर वहीं, इस दीवानी दुनिया के पार !
किरण
देख रहा है अरे चमकता शुचि सुन्दर सा किसका द्वार !
अरी कौन आता पागल सा बता रहा जो सुन्दर रीत ,
उस अभिनव मंदिर से किसकी स्तुति में गाता सा गीत !
ठहरो! सुनो, कह रहा वह क्या "हैं! यह है कैसा संगीत !
अरी रहा सारी संसृति को अपनी स्वर लहरी से जीत "!
दीवानी दुनिया के प्राणी सुनो सुनो कुछ देकर ध्यान ,
व्यर्थ भटकते क्यों माया में गाओ प्रियतम का गुणगान !
आओ चलो प्रेम मंदिर तक, प्रेम देव के चरणों तक ,
सेवा, स्नेह, हृदय, यह जीवन बलि कर दो स्वर्णिम सुख तक !
सजनि ! पथिक के राग सुनो कैसा सुन्दर उपदेश अरे !
करने प्रेम देव की पूजा जग से यदि हो जायें परे !
तो सजनी चल के ढूँढें अब पावन उस प्रियतम का द्वार ,
चलो चलें उस ओर वहीं, इस दीवानी दुनिया के पार !
किरण
प्रेम में छिपा सारा संसार..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....माँ को नमन
जवाब देंहटाएंआओ चलो प्रेम मंदिर तक, प्रेम देव के चरणों तक ,
जवाब देंहटाएंसेवा, स्नेह, हृदय, यह जीवन बलि कर दो स्वर्णिम सुख तक !
सजनि ! पथिक के राग सुनो कैसा सुन्दर उपदेश अरे !
करने प्रेम देव की पूजा जग से यदि हो जायें परे !
तो सजनी चल के ढूँढें अब पावन उस प्रियतम का द्वार ,
चलो चलें उस ओर वहीं, इस दीवानी दुनिया के पार !
Aprateem panktiyan!
दीवानी दुनिया के प्राणी सुनो सुनो कुछ देकर ध्यान ,
जवाब देंहटाएंव्यर्थ भटकते क्यों माया में गाओ प्रियतम का गुणगान !
बहुत ही अच्छी पंक्तियाँ हैं।
सादर
वाह!! अद्भुत प्रवाह एवं अति सुन्दर गीत!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारा सा गीत ...प्रत्येक पंक्ति बार बार पढ़ने को जी चाहे
जवाब देंहटाएंवाह ...भावमय करते शब्दों का संगम ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव लिए रचना
जवाब देंहटाएंआशा
khubsurat bhaw!!
जवाब देंहटाएंbahut khoobsurat rachna.
जवाब देंहटाएंतो सजनी चल के ढूँढें अब पावन उस प्रियतम का द्वार ,
जवाब देंहटाएंचलो चलें उस ओर वहीं, इस दीवानी दुनिया के पार !
...बहुत सुंदर और प्रभावी...
बहुत प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर .
जवाब देंहटाएंआओ चलो प्रेम मंदिर तक, प्रेम देव के चरणों तक ,
जवाब देंहटाएंसेवा, स्नेह, हृदय, यह जीवन बलि कर दो स्वर्णिम सुख तक !
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना ...
तो सजनी चल के ढूँढें अब पावन उस प्रियतम का द्वार ,
जवाब देंहटाएंचलो चलें उस ओर वहीं, इस दीवानी दुनिया के पार !भावपूर्ण रचना....
तो सजनी चल के ढूँढें अब पावन उस प्रियतम का द्वार ,
जवाब देंहटाएंचलो चलें उस ओर वहीं, इस दीवानी दुनिया के पार !
बहुत खूब ..... खुबसूरत कविता को बहुत -२ सम्मान ,
लगा जैसे ‘कामायनी’ का कोई हिस्सा पढ़ रहा....
जवाब देंहटाएंसुन्दर.. प्रवाही.. भावमयी...
जवाब नहीं आद अम्मा जी की लेखनी का...
सादर
खूब प्रवाह है जी…
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावप्रवण रचना।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंइस सुन्दर प्रस्तुति का व अनुपमा जी की अनुपम हलचल का आभार.
आदरणीया साधना जी अभिवादन देवी की कृपा से आनंद आ गया जयशंकर जी की याद आ गयी कितना सुन्दर भाव वैसा ही लय और प्रवाह ...प्रेम छलक पड़ा
जवाब देंहटाएंआभार आप का सुन्दर सृजन के लिए
भ्रमर ५
आओ चलो प्रेम मंदिर तक, प्रेम देव के चरणों तक ,
सेवा, स्नेह, हृदय, यह जीवन बलि कर दो स्वर्णिम सुख तक !
सजनि ! पथिक के राग सुनो कैसा सुन्दर उपदेश अरे !
करने प्रेम देव की पूजा जग से यदि हो जायें परे !
आओ चलो प्रेम मंदिर तक, प्रेम देव के चरणों तक ,
जवाब देंहटाएंसेवा, स्नेह, हृदय, यह जीवन बलि कर दो स्वर्णिम सुख तक !
सुंदर!
बहुत सुन्दर भाव लिए रचना
जवाब देंहटाएंआपके पोस्ट पर आना सार्थक सिद्ध हुआ । पोस्ट रोचक लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।
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