रविवार, 30 अक्टूबर 2011

चलो नया संसार बसायें


चलो नया संसार बसायें !
अवनी का कठोर अंचल तज
नभ में नव घर एक बनायें !
चलो नया संसार बसायें !

जहाँ तेरा मेरा कर यह
जग अपने को छले सखे ,
जहाँ चिंता चिनगारी से
यह अपना तन जले सखे ,
व्यर्थ जग की निष्ठुरता में
पड़ यह अपना अंग घुलायें !

चलो नया संसार बसायें !

जहाँ सुख-दुःख और
निराशा आशाओं के बंधन होवें ,
जहाँ औरों के फंदे में
फँस कर हम अपनापन खोवें ,
जहाँ अरमानों की आहुतियाँ
दे जीवन यज्ञ रचायें !

चलो नया संसार बसायें !

केवल जग के ऊपर निर्भर
जहाँ जीना मरना होगा ,
जहाँ उर में शान्ति तृप्ति
लाने को आँसू झरना होगा ,
और व्यर्थ हँसने रोने में
क्यों यह अपना समय गवाँयें !

चलो नया संसार बसायें !


किरण

15 टिप्‍पणियां:

  1. कहाँ मिलेगा ऐसा संसार ....
    माँ को नमन ...उनकी हर रचना अद्भुत और बेहद प्रभावशील होती है !
    आपको शुभकामनायें !

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  2. बहुत, बहुत, बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है .
    हार्दिक शुभकामनाएँ.
    आद. साधना जी ,आद. किरण जी मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
    विशेष अनुरोध है मेरा.

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  3. हर मन की पीड़ा को समाहित यह रचना जिस संसार की खोज में है, वह दूर ही दिख रहा है।

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  4. कल्पना को खूबसूरत पंख दे कर नए संसार को बनाने की चाह ... हर रचना में कवयित्री की विलक्षण प्रतिभा दिखाई देती है ..सुन्दर प्रस्तुति

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  5. जहाँ न उर में शान्ति तृप्ति
    लाने को आँसू झरना होगा ,

    सचमुच... आँसू बहाकर भी कहाँ मिलती है शान्ति...
    सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  6. केवल जग के ऊपर निर्भर
    जहाँ न जीना मरना होगा ,
    जहाँ न उर में शान्ति तृप्ति
    लाने को आँसू झरना होगा ,
    और व्यर्थ हँसने रोने में
    क्यों यह अपना समय गवाँयें !

    चलो नया संसार बसायें !

    बहुत सुन्दर....!!

    जवाब देंहटाएं
  7. क्यों यह अपना समय गंवाए
    चलो नया संसार बनाये ...
    अच्छी मनमोहक पोस्ट ...
    मेरा अनुरोध है की आप मरे नए
    पोस्ट "माँ की यादे" जरूर देखे ..
    आपका स्वागत है .....

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