शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

दुविधा


करूँ प्रसन्न तुम्हें मैं कैसे
क्या दूँ मैं प्रियतम उपहार ,
दीन हीन, तन क्षीण भिखारिन
मैं, प्रभु हो तुम रत्नागार !

पुष्प करूँ यदि भेंट दयामय
नंदन वन है यहाँ कहाँ ,
दीपक भेंट करूँ यदि तुमको
सूर्य ज्योत्सना नहीं यहाँ !

वस्त्र नहीं दे सकती प्रभुवर
मिलें कहाँ से वे पट पीत ,
माखन मिश्री भोजन हित मैं
पाऊँ कैसे मेरे मीत !

लक्ष्मी माता अर्द्धांगिनी हैं
पैसा भेंट करूँ कैसे ,
मेरे पास नहीं कुछ है प्रभु
दीन सुदामा हूँ जैसे !

सभी वस्तु की खान तुम्हीं हो
क्या दूँ भेंट प्रभु तुमको ,
एक वस्तु तव पास नहीं है
अति आनंद यही मुझको !

हृदय कमल तो चुरा लिया है
राधा रानी ने तेरा ,
रिक्त पड़ा अब तक वह स्थल
वहाँ बिठा लो मन मेरा !

कभी न ये आहें आवाजें
कान तुम्हारे पड़ती हैं ,
अति आरत हो तभी धरिणी माँ
दुःख से थर-थर कँपती है !

हृदय रहेगा पास तुम्हारे
तो सबकी सुन लोगे खूब ,
अभी असर नहीं होता होगा
जाते होगे सबसे ऊब !

उर की चाह तुम्हें है भगवन्
धन की चाह लगी मुझको ,
भक्ति सम्पदा मुझको दे दो
यह उर भेंट प्रभो तुमको !


किरण


15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही भक्ति-भाव से परिपूर्ण उत्तम गीत...

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  2. रिक्त पड़ा अब तक वह स्थल
    वहाँ बिठा लो मन मेरा !

    सुन्दर प्रस्तुति |
    बधाई ||

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  3. बहुत ही भक्ति-भाव से परिपूर्ण प्रस्तुति|

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  4. वाह वाह गज़ब की भावाव्यक्ति पूर्ण समर्पण से सराबोर एक चाहत को बहुत खूबसूरती से बांधा है।

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  5. बहुत सशक्त कविता और शब्द चयन |
    आशा

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  6. भक्ति सम्पदा मुझको दे दो
    यह उर भेंट प्रभो तुमको !

    उर भेंट,तो सब भेंट.
    भगवान तो ख़ुश हो ही जायेंगे.

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  7. हृदय कमल तो चुरा लिया है
    राधा रानी ने तेरा ,
    रिक्त पड़ा अब तक वह स्थल
    वहाँ बिठा लो मन मेरा !

    सुन्दर भाव....

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  8. ईश्वर को कुछ नहीं चाहिए ..प्रेम भरा हृदय बहुत है .. किरण जी की हर रचना अतुलनीय होती है ... अनुपम ताचना पढवाने का आभार

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  9. बेहतरीन भक्ति गीत ....
    असाधारण !

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  10. आग कहते हैं, औरत को,
    भट्टी में बच्चा पका लो,
    चाहे तो रोटियाँ पकवा लो,
    चाहे तो अपने को जला लो,

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  11. बहुत ही भक्ति-भाव से परिपूर्ण प्रस्तुति|

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