बुधवार, 25 अगस्त 2010

* जिज्ञासा *

देव तुम्हारी मंजु मूर्ति को
लेकर मैंने प्यार किया,
दुनिया के सारे वैभव को
तव चरणों में वार दिया !

किन्तु अविश्वासी जगती से
छिपा न मेरा प्यार महान्,
पागल कहा किसीने मुझको
कहा किसीने निपट अजान !

कहा एक ने ढोंगी है यह
जग छलने का स्वांग किया,
कहा किसी ने प्रस्तर पर
इस पगली ने वैराग्य लिया !

लख कर मंजुल मूर्ति तुम्हारी
मैंने था सौभाग्य लिया ,
कह दो मेरे इष्ट देव
क्या मैंने यह अपराध किया ?

किरण

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर भाव! आभार पढ़वाने का.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी कविता।

    *** हिंदी भाषा की उन्नति का अर्थ है राष्ट्र की उन्नति।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर भावों से युक्त एक सशक्त रचना |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  4. लख कर मंजुल मूर्ति तुम्हारी
    मैंने था सौभाग्य लिया ,
    कह दो मेरे इष्ट देव
    क्या मैंने यह अपराध किया ?

    सशक्त रचना,खूबसूरत भाव .

    जवाब देंहटाएं