शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

* मेरी वीणे *

मेरी वीणे कुछ तो बोल !
सुना-सुना कुछ प्रियतम हित ही
मधुमय अमृत घोल !
मेरी वीणे कुछ तो बोल !

मीठे-मीठे राग सुना कर,
प्रियतम के सुन्दर गुण गाकर,
इस व्याकुल से उर की उलझी
गुत्थी को तू खोल !

मेरी वीणे कुछ तो बोल !

उन्हें बुला दे अगम शक्ति से,
राग सुना कर प्रेम भक्ति के,
ओ मेरे जीवन की सहचरी
प्रिय का ह्रदय टटोल !

मेरी वीणे कुछ तो बोल !

विरह गान गाये जीवन भर,
रोयी है तू मुझे रुला कर,
गा मृदु स्वर लय आशा तंत्री
रस में विष मत घोल !

मेरी वीणे कुछ तो बोल !

किरण

6 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर प्रस्तुति!
    राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है।

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  2. वीणा के माध्यम से सभी कुछ तो कह दिया आपने!
    --
    इस सन्देशवाही रचना को पढ़वाने के लिए धन्यवाद!

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  3. गा मृदु स्वर लय आशा तंत्री
    रस में विष मत घोल !
    है मुश्किल बहुत विषपान कर अमृत बरसना ...
    मगर बन तू नीलकंठ सी ...रस घोल ...
    वीणे ...मधुर बोल ..
    वाह !

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  4. मन की व्यथा के लिए वीणा को माध्यम बना सुंदर कविता रच डाली. बहुत खूबसूरत.

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  5. बहुत खूबसूरत रचना ...यहाँ हर रचना मंत्रमुग्ध कर देती है ...

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  6. वीणा के माध्यम से मन को उजागर करती एक सशक्त रचना |
    आशा

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