साथी शून्य ह्रदय यह मेरा !
साथी शून्य ह्रदय यह मेरा
पर नयनों में नीर नहीं है,
है उत्फुल्ल न मन फिर भी
प्राणों में ऐसी पीर नहीं है !
रहीं जागती अभिलाषायें
अब तक, अब अलसा कर बोलीं,
'जग की विषम भावना से
क्या लड़ें, ह्रदय में धीर नहीं है !'
आशा भी उक्ता कर कहने लगी
'हमें भी जाने दो अब,
सूने घर में डेरा डालें
हम कुछ इतनी वीर नहीं हैं !'
भाग्य खींच जीवन नौका को
संसृति सागर में ले आया,
चारों ओर खोजने पर भी
मिलता कोई तीर नहीं है !
साथी जैसा क्रम चलता है
चलने दो, इसको मत छेड़ो,
लुटी हुई इस दुनिया में
मिलता कोई भी मीर नहीं है !
किरण
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंएक भाव प्रवण कविता |सुंदर भाव |बहुत अच्छे शब्द चयन
जवाब देंहटाएंआशा
bahut sundar!
जवाब देंहटाएं"साथी जैसा क्रम चलता है
जवाब देंहटाएंचलने दो, इसको मत छेड़ो,
लुटी हुई इस दुनिया में
मिलता कोई भी मीर नहीं है!"
भावों से सराबोर, गेयता से परिपूर्ण - बहुत बहुत सुंदर
भाव भरी सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar1
जवाब देंहटाएं