मैं लिये हाथ में बैठी आँसू से भीगा आँचल !
जब संध्या की बेला में
उड़ती चिड़ियों की पाँतें,
कर याद हाय रो पड़ती
बीते युग की वो बातें,
जब तुम मुझसे कुछ कहते
मैं लज्जा से झुक जाती,
मेरी अलकों की लड़ियाँ
कानों के कंगना बाती,
बस इसीलिये तो उठता
यह ज्वार ह्रदय में उच्छल !
मैं लिये हाथ में बैठी आँसू से भीगा आँचल !
सोते नीड़ों में पंछी
पंखों में चंचु छिपाए,
आँसू की माल पिरोती
मैं मन में पीर बसाए,
तुम भूल गए परदेसी
उस शरद यामिनी के क्षण,
जब किरण उज्ज्वला आकर
सिंचित कर जाती तन मन,
ये दृश्य अभी भी चित्रित
है ह्रदय पटल पर अविकल !
मैं लिये हाथ में बैठी आँसू से भीगा आँचल !
मधु ऋतु की मधुरिम संध्या
की याद ह्रदय में आती,
तुम कुंजों में जा छिपते
मैं एकाकी डर जाती,
व्याकुल उर की विनती सुन
तुम आते मैं मुस्काती,
बतला तो दो कब तक मैं
यूँ मन को रहूँ भुलाती,
टूटी सारी आशायें
टूटा जीने का सम्बल !
मैं लिये हाथ में बैठी आँसू से भीगा आँचल !
किरण
रविवार, 29 अगस्त 2010
बुधवार, 25 अगस्त 2010
* जिज्ञासा *
देव तुम्हारी मंजु मूर्ति को
लेकर मैंने प्यार किया,
दुनिया के सारे वैभव को
तव चरणों में वार दिया !
किन्तु अविश्वासी जगती से
छिपा न मेरा प्यार महान्,
पागल कहा किसीने मुझको
कहा किसीने निपट अजान !
कहा एक ने ढोंगी है यह
जग छलने का स्वांग किया,
कहा किसी ने प्रस्तर पर
इस पगली ने वैराग्य लिया !
लख कर मंजुल मूर्ति तुम्हारी
मैंने था सौभाग्य लिया ,
कह दो मेरे इष्ट देव
क्या मैंने यह अपराध किया ?
किरण
लेकर मैंने प्यार किया,
दुनिया के सारे वैभव को
तव चरणों में वार दिया !
किन्तु अविश्वासी जगती से
छिपा न मेरा प्यार महान्,
पागल कहा किसीने मुझको
कहा किसीने निपट अजान !
कहा एक ने ढोंगी है यह
जग छलने का स्वांग किया,
कहा किसी ने प्रस्तर पर
इस पगली ने वैराग्य लिया !
लख कर मंजुल मूर्ति तुम्हारी
मैंने था सौभाग्य लिया ,
कह दो मेरे इष्ट देव
क्या मैंने यह अपराध किया ?
किरण
शुक्रवार, 20 अगस्त 2010
* मेरी वीणे *
मेरी वीणे कुछ तो बोल !
सुना-सुना कुछ प्रियतम हित ही
मधुमय अमृत घोल !
मेरी वीणे कुछ तो बोल !
मीठे-मीठे राग सुना कर,
प्रियतम के सुन्दर गुण गाकर,
इस व्याकुल से उर की उलझी
गुत्थी को तू खोल !
मेरी वीणे कुछ तो बोल !
उन्हें बुला दे अगम शक्ति से,
राग सुना कर प्रेम भक्ति के,
ओ मेरे जीवन की सहचरी
प्रिय का ह्रदय टटोल !
मेरी वीणे कुछ तो बोल !
विरह गान गाये जीवन भर,
रोयी है तू मुझे रुला कर,
गा मृदु स्वर लय आशा तंत्री
रस में विष मत घोल !
मेरी वीणे कुछ तो बोल !
किरण
सुना-सुना कुछ प्रियतम हित ही
मधुमय अमृत घोल !
मेरी वीणे कुछ तो बोल !
मीठे-मीठे राग सुना कर,
प्रियतम के सुन्दर गुण गाकर,
इस व्याकुल से उर की उलझी
गुत्थी को तू खोल !
मेरी वीणे कुछ तो बोल !
उन्हें बुला दे अगम शक्ति से,
राग सुना कर प्रेम भक्ति के,
ओ मेरे जीवन की सहचरी
प्रिय का ह्रदय टटोल !
मेरी वीणे कुछ तो बोल !
विरह गान गाये जीवन भर,
रोयी है तू मुझे रुला कर,
गा मृदु स्वर लय आशा तंत्री
रस में विष मत घोल !
मेरी वीणे कुछ तो बोल !
किरण
गुरुवार, 12 अगस्त 2010
* शून्य ह्रदय *
साथी शून्य ह्रदय यह मेरा !
साथी शून्य ह्रदय यह मेरा
पर नयनों में नीर नहीं है,
है उत्फुल्ल न मन फिर भी
प्राणों में ऐसी पीर नहीं है !
रहीं जागती अभिलाषायें
अब तक, अब अलसा कर बोलीं,
'जग की विषम भावना से
क्या लड़ें, ह्रदय में धीर नहीं है !'
आशा भी उक्ता कर कहने लगी
'हमें भी जाने दो अब,
सूने घर में डेरा डालें
हम कुछ इतनी वीर नहीं हैं !'
भाग्य खींच जीवन नौका को
संसृति सागर में ले आया,
चारों ओर खोजने पर भी
मिलता कोई तीर नहीं है !
साथी जैसा क्रम चलता है
चलने दो, इसको मत छेड़ो,
लुटी हुई इस दुनिया में
मिलता कोई भी मीर नहीं है !
किरण
साथी शून्य ह्रदय यह मेरा
पर नयनों में नीर नहीं है,
है उत्फुल्ल न मन फिर भी
प्राणों में ऐसी पीर नहीं है !
रहीं जागती अभिलाषायें
अब तक, अब अलसा कर बोलीं,
'जग की विषम भावना से
क्या लड़ें, ह्रदय में धीर नहीं है !'
आशा भी उक्ता कर कहने लगी
'हमें भी जाने दो अब,
सूने घर में डेरा डालें
हम कुछ इतनी वीर नहीं हैं !'
भाग्य खींच जीवन नौका को
संसृति सागर में ले आया,
चारों ओर खोजने पर भी
मिलता कोई तीर नहीं है !
साथी जैसा क्रम चलता है
चलने दो, इसको मत छेड़ो,
लुटी हुई इस दुनिया में
मिलता कोई भी मीर नहीं है !
किरण
शुक्रवार, 6 अगस्त 2010
* कैसे कहूँ *
कैसे कहूँ सखी मैं तुमसे अपने उर की मौन व्यथा,
उमड़-उमड़ कर कहते आँसू इस जीवन की करुण कथा !
आज याद आती बचपन की कैसा था वह प्यारा काल,
खाना, हँसना और खेलना अल्हड़पन से मालामाल !
मैं भोली थी, लेशमात्र भी दुःख का ज्ञान न था मुझको,
नहीं जानती, प्रेम द्वेष का किंचित् भान न था मुझको !
निज सखियों संग खेल खेलना, गाना ही था मुझे पसंद,
प्रेम कलह में कैसा सुख था, रहती थी कैसी निर्द्वंद !
किन्तु समय ने पलटा खाया, मैंने यौवन पथ देखा,
इस विष के प्याले को सजनी मैंने अमृत सम लेखा !
देखा मैंने प्रेम पंथ भी, प्रियतम को भी देखा खूब,
और प्रणय की रंगरलियों से ह्रदय कभी भी सका न ऊब !
किन्तु सखी है मँहगा यह पथ भेंट किया जिसको बचपन,
भूल गयी सब हँसी खेल मैं, है चिन्तामय अब जीवन !
यह इच्छा है एक बार फिर प्यारा बचपन आ जाये,
वह अल्हड़ता, वह चंचलता फिर जीवन में छा जाये !
किरण
उमड़-उमड़ कर कहते आँसू इस जीवन की करुण कथा !
आज याद आती बचपन की कैसा था वह प्यारा काल,
खाना, हँसना और खेलना अल्हड़पन से मालामाल !
मैं भोली थी, लेशमात्र भी दुःख का ज्ञान न था मुझको,
नहीं जानती, प्रेम द्वेष का किंचित् भान न था मुझको !
निज सखियों संग खेल खेलना, गाना ही था मुझे पसंद,
प्रेम कलह में कैसा सुख था, रहती थी कैसी निर्द्वंद !
किन्तु समय ने पलटा खाया, मैंने यौवन पथ देखा,
इस विष के प्याले को सजनी मैंने अमृत सम लेखा !
देखा मैंने प्रेम पंथ भी, प्रियतम को भी देखा खूब,
और प्रणय की रंगरलियों से ह्रदय कभी भी सका न ऊब !
किन्तु सखी है मँहगा यह पथ भेंट किया जिसको बचपन,
भूल गयी सब हँसी खेल मैं, है चिन्तामय अब जीवन !
यह इच्छा है एक बार फिर प्यारा बचपन आ जाये,
वह अल्हड़ता, वह चंचलता फिर जीवन में छा जाये !
किरण
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