आज माँ की काव्य मंजूषा से एक अनमोल रचना आपके लिये प्रस्तुत कर रही हूँ ! इसका सृजनकाल भारत की स्वतन्त्रता से पूर्व का है ! माँ की लेखनी की धार कितनी प्रखर और उनकी रचना का कथ्य कितना प्रेरक है इसका आकलन आप स्वयं करें और रचना का आनद उठायें !
आशायें हैं मुझे हँसाती भारत मेरे जीवन धन ,
आज नहीं तो कल तक तेरे कट जायेंगे सब बंधन !
तू स्वतंत्र होगा गूँजेगी घर-घर तेरी जय जयकार ,
विजय पताका फहराएगी कीर्ति दीप्त शोभा साकार !
मचल पड़े फिर मृत्युलोक में आने को वे तेरे लाल ,
भीष्म, भीम, अर्जुन, प्रताप, अभिमन्यु, शिवाजी, मोतीलाल !
हम सब पहन केसरी बाना साका साज सजायेंगे ,
अब भी भारत शून्य नहीं वीरों से यह दिखलायेंगे !
आज शिवा, दुर्गा, चामुण्डा देशभक्त ये वीर सुभट ,
ढिल्लन, सहगल, शाहनवाज़, सेनापति बन कर हुए प्रकट !
चमक पड़ी है अब कण-कण में बन स्वतन्त्रता चिनगारी ,
उमड़ उठे हैं शस्त्र उठाने बालक, वृद्ध, युवा, नारी !
पुन: पूर्व गौरव का तेरे मस्तक तिलक लगायेंगे ,
प्यारे भारत शीघ्र तुझे हम विजय मुकुट पहनायेंगे !
दे आशीष बढ़ा पग आगे विजय ध्वजा फहरायें हम ,
मातृभूमि पर हँसते-हँसते मस्तक भेंट चढायें हम !
किरण