शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2011

अभिसार


चलो चलें उस ओर प्रेम की
मधुर ज्योति जहाँ जगे सखी ,
प्रेम वायु के शीतल झोंके
इधर-उधर से लगें सखी !

प्रेम सिंधु के उर प्रांगण में
चलो तरंगें बनें सखी ,
मिल कर प्रियतम के संग हम तुम
प्रेम केलि में पगें सखी !

आओ बना प्रेम का मंदिर
प्रिय की मूर्ति बिठायें सखी ,
जग के हर कोने-कोने में
प्रेम सुधा सरसायें सखी !

गा-गा करके राग प्रेम के
प्रियतम को हरषायें सखी ,
तन मन धन सब आज गँवा कर
प्रिय प्रसाद को पायें सखी !


किरण

चित्र गूगल से साभार

29 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  2. बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
    शुभ-कामनाएं ||

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  3. चलो चलें उस ओर प्रेम की
    मधुर ज्योति जहाँ जगे सखी ,
    प्रेम वायु के शीतल झोंके
    इधर-उधर से लगें सखी !

    बहुत सुंदर.

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  4. सुंदर। अब प्रेम गीत कम ही पढ़ने को मिलते हैं।

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  5. प्रेम सिंधु के उर प्रांगण में
    चलो तरंगें बनें सखी ,
    मिल कर प्रियतम के संग हम तुम
    प्रेम केलि में पगें सखी !

    प्रेम में पूरी तरह डूबने को आतुर मन ... बहुत प्यारी रचना पढवाने के लिए आभार

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  6. बहुत ही खूबसूरत कविता आभार पढवाने के लिए

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  7. जरूरी कार्यो के कारण करीब 15 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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  8. बहुत मधुर रचना पढवाने के लिए आपका आभार !
    हार्दिक शुभकामनाएं !

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  9. इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी की जा रही है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  10. जग के हर कोने-कोने में
    प्रेम सुधा सरसायें सखी !...

    --वाह वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!---ऐसी ही प्रेम-भाव सुधा सरसाई जाती रहे तो यह जग स्वर्ग बन् ही जाए.....

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  11. प्रेम सिंधु के उर प्रांगण में
    चलो तरंगें बनें सखी ,
    मिल कर प्रियतम के संग हम तुम
    प्रेम केलि में पगें सखी !
    ..sundar prempagi rachna..

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  12. अति सुन्दर प्रेम पगी कोमल रचना....शुभकामनायें !!

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