गुरुवार, 28 जुलाई 2011

जगमग जग हो जाये

कवि तुम ऐसी ज्योति जलाओ
जगमग जगमग जग हो जाये !

नील गगन के दीप सुनहरे
लाकर धरती पर बिखराओ ,
सप्त सिंधु की लोल लहरियों
पर जागृति का साज सजाओ ,

कवि तुम ऐसा राग सुनाओ
छोड़ उदासी सब मुस्कायें !
कवि तुम ऐसी ज्योति जलाओ
जगमग जगमग जग हो जाये !

बाल सूर्य की सुघर रश्मियाँ
लाकर कण-कण ज्योतित कर दो ,
अरुण उषा का पिला सोमरस
रागान्वित सबका मन कर दो ,

कवि तुम ऐसी बीन बजाओ
तन मन धन की सुधि खो जाये !
कवि तुम ऐसी ज्योति जलाओ
जगमग जगमग जग हो जाये !

शीतल स्वाति बूँद चुन-चुन कर
शान्ति सुधा रस ला बरसाओ ,
तप्त धरणी, संतप्त प्राण उर
में शीतलता आ फैलाओ ,

कवि तुम ऐसी प्रीति जगाओ
राग द्वेष सब क्षय हो जाये !
कवि तुम ऐसी ज्योति जलाओ
जगमग जगमग जग हो जाये !


किरण

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर शब्दसंयोजन..सुंदर कविता....।

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  2. bahut sundar, kavi ke liye isi liye kaha gaya hai ki
    jahan na pahuche ravi, vahan pahuche kavi.

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  3. कवि से यही अपेक्षा हो, उत्साह जगाता गीत।

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  4. बहुत सुन्दर रचना है आपकी माता जी की!
    मैं तो उनका शुरू से ही प्रशंसक हूँ!

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  5. कवि तुम ऐसी ज्योति जलाओ
    जगमग जगमग जग हो जाये !

    सुन्दर जगमग जगमग करती प्रस्तुति के लिए आभार.

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  6. कवि तुम ऐसा राग सुनाओ
    छोड़ उदासी सब मुस्कायें !

    कवि से ऐसी ही अपेक्षाएं कि जाती हैं,और वे खरे भी उतरते हैं...इन अपेक्षाओं पर
    सुन्दर कविता

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  7. कवि तुम ऐसी प्रीति जगाओ
    राग द्वेष सब क्षय हो जाये !
    कवि तुम ऐसी ज्योति जलाओ
    जगमग जगमग जग हो जाये !

    एक कवि से समाज हित मे यही अपेक्षा की जाती है। और यह एक कवि का कर्तव्य है कि इन अपेक्षाओं पर खरा उतरे।

    सादर

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  8. कवि का दाइत्व बताती भावप्रवण रचना|
    आशा

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  9. बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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