शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

कृतघ्न मानव

निठुर मनुज की दानवता को कब किसने पहचाना !

प्रथम स्नेह का सम्बल देकर दीपक को भरमाया ,
सरल वर्तिका के जीवन को तिल-तिल कर जलवाया ,
जिसने ज्योति बिखेरी सब पर उसके तले अँधेरा ,
पर उपकारी इस दीपक ने जग से है क्या पाया !

इसने चुप-चुप जलना सीखा, जग ने इसे जलाना !
निठुर मनुज की दानवता को कब किसने पहचाना !

जिस माटी से अन्न उगा, जिसमें जीवन के कण हैं ,
मिलता अमृत सा जल जिसके अंतर से प्रतिक्षण है ,
किन्तु इसे ही व्यर्थ समझ कर सबने की अवहेला ,
जग के अत्याचारों के उस पर कितने ही व्रण हैं !

इसने पल-पल गलना सीखा, जग ने इसे गलाना !
निठुर मनुज की दानवता को कब किसने पहचाना !

निर्धन कृषकों की मेहनत का फल है सबने देखा ,
उसके अगणित उपकारों का कहो कहाँ पर लेखा ,
रूखी-सूखी खाकर वे औरों पर अन्न लुटाते ,
अंग-अंग से बहा पसीना, मुख स्मित की रेखा !

फिर भी इसने डरना सीखा, जग ने इसे डराना !
निठुर मनुज की दानवता को कब किसने पहचाना !

जिस नारी के रक्तदान से नर ने यह तन पाया ,
जिसने गीले में सोकर सूखे में इसे सुलाया ,
आज उसी को पशु बतला कर करते हाय अनादर ,
जिसने बरसों भूखी रह कर मन भर इसे खिलाया !

इसने केवल रोना जाना, जग ने इसे रुलाना !
निठुर मनुज की दानवता को कब किसने पहचाना !


किरण


12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रचना ..किरण जी की हर रचना बहुत गहन भावों को समेटे हुए होती है ...

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  2. अपने आप को धन्य मान रही हूँ ..सुबह सुबह इस अलौकिक रचना को पढ़ने के लिए ..
    शब्द नहीं हैं क्या लिखूं ...?
    अद्भुत ...!!

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  3. भावपूर्ण दिल को गहराई तक छूती रचना |
    आशा

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  4. गहन भावो की सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  5. यही विडम्बना है कि जहाँ से सृजन होता है उसी को भुला दिया जाता है।

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  6. बड़ी ही प्रभावी दिल को गहराई तक छूती रचना |

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  7. निर्धन कृषकों की मेहनत का फल है सबने देखा ,
    उसके अगणित उपकारों का कहो कहाँ पर लेखा ,
    रूखी-सूखी खाकर वे औरों पर अन्न लुटाते ,
    अंग-अंग से बहा पसीना, मुख स्मित की रेखा !

    ये बात कहने वाला आज शायद ही कोई हो।
    बहुत ही प्रभावी कविता है।
    ------------------
    कल 27/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  8. गह्र्र अर्थ समेटे ... सुन्दर रचना है ...

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  9. इसने केवल रोना जाना, जग ने इसे रुलाना !
    निठुर मनुज की दानवता को कब किसने पहचाना !
    बहुत खूबसूरत रचना एक - एक शब्द बोलता हुआ |

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