री इठलाती क्यों बार-बार !
मदमस्त हुई चंचल कलिके,
क्यों झूल रही तू डार-डार !
री इठलाती क्यों बार-बार !
टुक दे तो ध्यान अरी पगली
क्या जीवन का है अर्थ अरे,
क्यों व्यर्थ गर्व में दीवानी
तू निज तन में सौंदर्य भरे,
ओ मतवाली ले नयन खोल
बस है जीवन में हार-हार !
री इठलाती क्यों बार-बार !
है अभी बालपन भोला सा
पर सजनि रहेगा सदा नहीं,
आयेगा मतवाला यौवन
जो ले जायेगा तुझे कहीं,
आयेंगे प्रेमी मधुप सखी
दो एक नहीं हाँ चार-चार !
री इठलाती क्यों बार-बार !
वे भरे स्वार्थ से मतवाले
तव सुषमा लूट चुकेंगे जब,
उड़ जायेंगे फिर दूर दिशा
तेरी मनुहार करेंगे कब,
हो जायेगा मधुरे तेरा
यह सुन्दर यौवन भार-भार !
री इठलाती क्यों बार-बार !
आवेगा बन प्रचण्ड झंझा
बहता रहता जो मलयानिल,
शीतलता देती चन्द्रकिरण
तब बन जायेगी अरी अनल,
गिर जायेगी फिर धरिणी पर
हाँ हो करके तू छार-छार !
री इठलाती क्यों बार-बार !
कर मर-मर शब्द कथा अपनी
फिर कहा करेंगे अंग तेरे ,
उड़ करके आँधी के संग हा
मिट जायेंगे अरमान भरे ,
कहने सुनने को कथा तेरी
रह जायेगी बस सार-सार !
री इठलाती क्यों बार-बार !
किरण
टुक दे तो ध्यान अरी पगली
जवाब देंहटाएंक्या जीवन का है अर्थ अरे,
क्यों व्यर्थ गर्व में दीवानी
तू निज तन में सौंदर्य भरे,
ओ मतवाली ले नयन खोल
बस है जीवन में हार-हार !
ऐ री पवन क्यों तू हर के हार ना माने ....?
सुंदर अभिव्यक्ति -
बहुत सुंदर रचना -
शुभकामनाएं -
बहुत सुन्दर और कोमल!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंसार्थक और भावप्रवण रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत सुंदर ओर भाव्पुर्ण रचना, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंरी इठलाती क्यों बार-बार !
जवाब देंहटाएंमदमस्त हुई चंचल कलिके,
क्यों झूल रही तू डार-डार !
री इठलाती क्यों बार-बार !
बहुत ही चुहल भरी, कविता....एक अलग अंदाज़ की कविता बहुत अच्छी लगी.
कर मर-मर शब्द कथा अपनी
जवाब देंहटाएंफिर कहा करेंगे अंग तेरे ,
उड़ करके आँधी के संग हा
मिट जायेंगे अरमान भरे ,
कहने सुनने को कथा तेरी
रह जायेगी बस सार-सार !
री इठलाती क्यों बार-बार !
...बहुत ही प्रवाहमयी भावपूर्ण रचना...बहुत सुन्दर
आयेगा मतवाला यौवन
जवाब देंहटाएंजो ले जायेगा तुझे कहीं,
आयेंगे प्रेमी मधुप सखी
दो एक नहीं हाँ चार-चार ...
उत्ताल योवन की नास्ति को लाजवाब तरीके से लिखा है आपने .. बधाई ..