रविवार, 2 जनवरी 2011

प्राण तुम्हारे नयनों में

प्राण तुम्हारे नयनों में मैं
खोज रही कुछ सुख का स्त्रोत,
दीन निर्धनों की आहों से
करुणामय हो ओत-प्रोत !

आज हृदय में शक्ति न इतनी
नयनों का अभिसार करूँ,
प्रणय सिंधु के तीर खड़ी मैं
कैसे तुमको प्यार करूँ !

मुझे बुलाती अट्टहास कर
उन लहरों की तीव्र पुकार,
स्वयम् बिखर जाती टकरा कर
चट्टानों से हो जो छार !

आज सहोदर भ्राताओं में
है कितना वैषम्य महान्,
एक झुक रहा है चरणों में
और दूसरा लिये कृपाण !

सुख की सेज, राजसी भोजन
वस्त्रों से पूरित भण्डार,
एक सुखी है और दूसरा
नंगे भूखों का सरदार !

भूखे नन्हे बच्चों की वे
करुण पुकारें उठ कर आज,
अंतरिक्ष से जा टकरातीं
और लौटतीं बेआवाज़ !

दुःख के भीषण अंधकार में
सुख की किरण न पहुँची एक,
नयनों का निर्झर झर करता
दरिद्र देव का है अभिषेक !

हृदय कष्ट से रो-रो उठता
पर कैसे प्रतिकार करूँ ,
दुखियारे मानव समाज पर
दया करूँ या प्यार करूँ !

किरण

15 टिप्‍पणियां:

  1. आज सहोदर भ्राताओं में
    है कितना वैषम्य महान्,
    एक झुक रहा है चरणों में
    और दूसरा लिये कृपाण !
    sach me samay ke saath sab kuch badal rahaa hai| saMvedanaayen mar rahee hain. bahut acchee racanaa badhaaI aapako saparivaar naye saal kee hardik shubhkamanayen

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  2. बहुत अच्छा लिखा है | शब्द चयन बेमिसाल है |
    आशा

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  3. बेहद सुन्दर शब्द संयोजन है...
    बढ़िया कविता,हमेशा की तरह

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  4. आप की कविता से दर्द झलकता हे इस समाज का, बहुत अच्छी रचना धन्यवाद

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  5. बहुत अच्छी रचना धन्यवाद
    नव-वर्ष की शुभकामनाएँ आपको और आपके परिवार को भी

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  6. गाजियाबाद से एक यलो एक्सप्रेस चल रही है जो आपके ब्लाग को चौपट कर सकती है, जरा सावधान रहे।

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  7. बहुत सुन्दर रचना!

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  8. बहुत सुन्दर !! शुभकामनायें !

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  9. मर्म छू मुग्ध कर गयी रचना...

    स्थिति का प्रभावशाली सटीक चित्रण किया है आपने...मन बोझिल हो गया..

    काश कि यह दृश्य बदल पाता..

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  10. हृदय कष्ट से रो-रो उठता
    पर कैसे प्रतिकार करूँ ,
    दुखियारे मानव समाज पर
    दया करूँ या प्यार करूँ !

    बहुत खूबसूरती से मन का अंतर्द्वद्व बताया है -
    शुभकामनाएं

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  11. मन के भीतर उठ रहे द्वन्द की
    बहुत सुन्दर रचना में अभिव्यक्ति ...
    एक प्रभावशाली रचना !!

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  12. बहुत पसन्द आया

    बहुत देर से पहुँच पाया....... ....माफी चाहता हूँ.

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