बुधवार, 29 जून 2011

बादल आये

साथी बादल घिर कर आये !
नया संदेशा इस धरती के लिये खोज कर वे लाये ,
साथी बादल घिर कर आये !

हरी भरी हो उठी धरिणी यह सबको जीवन दान मिला है ,
झुलसे सूखे तरु पुंजों को फलने का वरदान मिला है ,
पाया कृषकों ने अपना धन ये बादल उसके मन भाये !

साथी बादल घिर कर आये !

सूखे खेतों की मिट्टी में आई फिर से नयी जवानी ,
प्यासे सागर, तालों में भर गया मधुर अमृत सा पानी ,
सुखी हुई सब सृष्टि, सभी प्राणी सुख से भर कर मुस्काये !

साथी बादल घिर कर आये !

सुखद वायु बह उठी पूर्व से गीत जागरण का गाती सी ,
द्वेलित करती सबका मन , चंचलता से इठलाती सी ,
चातक, दादुर, मोर उदासी तज पागल होकर हर्षाये !

साथी बादल घिर कर आये !

किन्तु जीर्ण कुटिया वह देखी साथी अब भी सूनी-सूनी ,
देख-देख कर सबका सुख नित आहें भरती दूनी-दूनी ,
उसके लिये सभी कुछ सूना कौन उसे अब धीर बँधाये !

साथी बादल घिर कर आये !

बैठी उसकी तरुणी बाला बाट जोहती निज प्रियतम की ,
ठगी-ठगी सी चौंक-चौंक पड़ती सुध-बुध खो निज तन मन की ,
उसके परदेसी प्रियतम का कौन संदेशा बादल लाये !

साथी बादल घिर कर आये !

घोर निराशा के बादल उसके उर के आँगन में छाये ,
आहों की पुरवा बहती, नित नयन नीर सावन बरसाये ,
सखी कौन इस पावस की तुलना उस पावस से कर पाये !

साथी बादल घिर कर आये !


किरण

शनिवार, 25 जून 2011

कृष्ण से अनुनय



एक
बार बस एक बार
इस भारत में प्रभु आ जाओ !

सोते
से इसे जगा जाओ ,
भूलों को राह दिखा जाओ ,
बिछडों को गले लगा जाओ ,
गीता का ज्ञान सिखा जाओ !
हे नाथ यहाँ आकर के फिर
अर्जुन से वीर बना जाओ !

एक बार बस एक बार
इस भारत में फिर आ जाओ !

थीं दूध दही की नदी जहाँ ,
कटती हैं गउएँ नित्य वहाँ ,
होते हैं पापाचार महा ,
तुम छिपे हुए हो कृष्ण कहाँ ,
क्या नहीं सुनाई देता है
यह अत्याचार अरे जाओ !

एक बार बस एक बार
इस भारत में फिर आ जाओ !

मुरली बिन सुने तरसते हैं ,
नयनों से अश्रु बरसते हैं ,
बृज, गोकुल, मथुरा फिरते हैं ,
बेबस गोपाल भटकते हैं ,
अब धर्म हानि को प्राप्त हुआ ,
आकर के इसे बचा जाओ !

एक बार बस एक बार
इस भारत में फिर आ जाओ !

हर साल बुला रह जाते हैं ,
व्याकुल जन अब अकुलाते हैं ,
हे नाथ न क्यों आ जाते हो ,
क्यों इतनी राह दिखाते हो ,
क्यों रुष्ट हुए हो हाय कहो ,
आकर के तनिक बता जाओ !

एक बार बस एक बार
इस भारत में फिर आ जाओ !

किरण

सोमवार, 20 जून 2011

प्रेरणा

युग बदलता देख कवि तुम भी बदल दो भावनायें !

वेदना की ज्वाल जग में शान्ति का संदेश लाये ,
धधकती चिंता चिता बन राख जग में मुक्ति पाये ,
त्याग की दृढ़ भावना कवि हृदय की बहुमूल्य निधि हो ,
वज्र सा कर्तव्य पथ हो सुगम, दायें हाथ विधि हो ,
पा नया अवलंब पुष्पित पल्लवित हों कामनायें !
युग बदलता देख कवि तुम भी बदल दो भावनायें !

शून्य नभ में झिलमिलायें आश के स्वर्णिम सितारे ,
नयन सीपि के धवल मुक्ता दया करके पग पखारें ,
आपदाओं की लहरियों बीच पंकज सरसरायें ,
खिल उठें कवि हृदय, हों सुकुमार सुख की लालसायें ,
नित्य पलटें पृष्ठ जीवन का नया कवि कल्पनायें !
युग बदलता देख कवि तुम भी बदल दो भावनायें !

मधुर स्मृति गीत हर लें उर क्षतों की विषद् पीड़ा ,
अमर जीवन में विरह की एक होवे मिलन व्रीड़ा ,
जागरण की मधुर स्मृति स्वप्न में बन मूर्त आयें ,
विश्व की रंगीनियाँ उर पर न अब अधिकार पायें ,
दूर रह कर प्रिय करें स्वीकृत अकिंचन अर्चनायें !
युग बदलता देख कवि तुम भी बदल दो भावनायें !


किरण

शुक्रवार, 17 जून 2011

ऐ मेरी तूलिके महान्






मेरी तूलिके महान् !

चल री चल अब उस प्रदेश, हो देश प्रेम जहाँ मूरतमान !

ऐ मेरी तूलिके महान् !

माता पुत्र, बहन भाई को निज कर्तव्य बताती हो ,
प्रिया प्राणपति को जिस स्थल सच्चा पथ दिखलाती हो ,
चलो सखी वहीं जहाँ युवक गाते हों देश प्रेम का गान !

ऐ मेरी तूलिके महान् !

"रण विजयी हो पुत्र ", प्रेम से माँ यह आशिष देती हो ,
"भाई लौट न पीठ दिखाना", बहन गर्व से कहती हो ,
कहती हो पतिप्राणा पत्नी, "जय पाना प्राणों के प्राण" !

ऐ मेरी तूलिके महान् !

कहें सुकोमल बाल पिता से, "पिता हमें भी संग लो आज ,
मातृ भूमि हित बलि हो जावें इससे बढ़ कर कौन सुकाज ,
गर्व करे जनजीवन हम पर, हमें देश पर हो अभिमान ! "

ऐ मेरी तूलिके महान् !


किरण

शुक्रवार, 10 जून 2011

बाँध लो कर्म की डोरियों से इसे

ओ भ्रमित मानवों जा रहा है समय ,
बाँध लो कर्म की डोरियों से इसे !

क्या पता चाँदनी यूँ खिलेगी सदा ,
क्या पता यामिनी यूँ मिलेगी सदा ,
क्या पता सूर्य की ये प्रखर रश्मियाँ
यूँ तपाने धरा को चलेंगी सदा !

फिर मलय फूल को क्या खिला पायेगा ,
क्या न बन ज्वाल जग को जला जायेगा ,
या तुम्हारी विषम भावना का गरल
मेट सौंदर्य सबका चला जायेगा !

भावना भीति की मत हृदय में भरो ,
देख रोड़े डगर में न मन में डरो ,
हो चकित सृष्टि सब देखती ही रहे
जो भी करना है ऐसा निराला करो !

भेंट दो व्यर्थ की भ्रान्तियाँ शान्ति से ,
क्या मिलेगा तुम्हें नित्य की क्रान्ति से ,
यह न जीवन किसी का अमर है यहाँ
जगमगा दो जगत कर्म की क्रान्ति से !

बंद कर दो यह नरमेध बेकार है ,
ज़िंदगी का सहारा अरे प्यार है ,
है इसीमें वतन की सुरक्षा निहित
नाश का मन्त्र यह विश्व संहार है !

देखती क्षुब्ध संध्या बिखरते महल ,
खोजता है गगन भूमि पर कुछ पहल ,
प्रश्न उठते अनेकों प्रकृति से सदा
जो न मुश्किल हैं समझो न जिनको सहल !

है उनींदा कदम काल की चाल का ,
साध लो प्रीति की लोरियों से इसे !
ओ भ्रमित मानवों जा रहा है समय
बाँध लो कर्म की डोरियों से इसे !


किरण



शुक्रवार, 3 जून 2011

गायक से

उद्बोधन
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किस शान्ति सुधा की आशा में ,
कविता की इस परिभाषा में ,
नैराश्य तमावृत तन और मन ,
ज्योतित करता यह उद्बोधन !

गायक से
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गायक ऐसा गा दे गान !
उमड़ उठें सातों ही सागर ,
हिल जावे यह विश्व महान् !
गायक ऐसा गा दे गान !

उठें क्रान्ति की प्रबल तरंगें
छा जावें तीनों भुवनों में ,
जगे महा आंदोलन फिर से
जगती के व्यापक प्रांगण में ,
नभ, पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि में
होवे फिर संघर्ष महान् !
गायक ऐसा गा दे गान !

पर्वत पर्वत से टकराये,
नदिया से नदिया भिड़ जाये ,
मलयानिल हो जाये झंझा
सूर्य तेज से और तपाये ,
शीतल रजनी के तारों में
तड़ित वेग का हो आधान !
गायक ऐसा गा दे गान !

ऊँच-नीच का भूत भगा कर ,
हों समान सब प्रेम भाव धर ,
हो अखण्ड साम्राज्य शान्ति का ,
उमड़ें सप्त सिंधु मधु पथ पर ,
विषय वासना के महलों में
गूँजे देश प्रेम का गान !
गायक ऐसा गा दे गान !

रहें प्रेम से भाई-भाई ,
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई ,
हिन्दी, हिन्दू, हिंद देश की
फिर से जग में फिरे दुहाई ,
पहने तब प्यारी भारत माँ
निज गौरव का ताज महान् !
गायक ऐसा गा दे गान !


किरण