शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

बह चली वायु

माँ की डायरी में एक बहुत सुन्दर रचना पढ़ने के लिये मिली जो आज के समय में भी उतनी ही सामयिक है ! उन्होंने किसी विशिष्ट अष्टमी के दिन शायद इसे लिखा होगा ! यद्यपि आज अष्टमी तो नहीं है लेकिन फिर भी इसे आपसे शेयर करने की इच्छा हुई तो सोचा उनके ब्लॉग पर इसे पोस्ट कर दूँ ! लीजिए आप भी इसका आनंद उठाइये !

बह चली वायु कुछ पलटी सी !
विक्षिप्त बढ़ी जाती संसृति
कुछ ठिठकी सी, कुछ चलती सी !

बह चली वायु कुछ पलटी सी !

मृदु दिवसों के सुख स्वप्न मुए
जीवन में दुख का राज हुआ,
सुजला सुफला इस धरती पर
उजड़ा सा सारा साज हुआ ,
लो सुनो पुकारें दीनों की
कह रही हाथ कुछ मलती सी !

बह चली वायु कुछ पलटी सी !

अब शक्ति न इतनी कष्ट सहे
क्यों आशा भी हा जला रही,
सुख अमृत दूर हटा हमसे
विपदाओं का विष पिला रही,
क्यों नहीं निराशा छा जाती
आश्वासन आँचल झलती सी !

बह रही वायु कुछ पलटी सी !

दधि दूध छोड़ निर्मल जल तक
पीने को प्राप्त नहीं होता,
क्या जाने कब तक जागेगा
इस उपवन का माली सोता,
यहाँ सदा अष्टमी आती है
भोले भक्तों को छलती सी !

बह चली वायु कुछ पलटी सी !


किरण

24 टिप्‍पणियां:

  1. sundar rachna

    आप को नवबर्ष की हार्दिक शुभ-कामनाएं !
    आने बाला बर्ष आप के जीवन में नयी उमंग और ढेर सारी खुशियाँ लेकर आये ! आप परिवार सहित स्वस्थ्य रहें एवं सफलता के सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंचे !

    नवबर्ष की शुभ-कामनाओं सहित

    संजय कुमार चौरसिया

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  2. दधि दूध छोड़ निर्मल जल तक
    पीने को प्राप्त नहीं होता,
    क्या जाने कब तक जागेगा
    इस उपवन का माली सोता,

    ओह , यह माली तब से अब तक सो ही रहा है ..कुछ और भी ज्यादा गहरी नींद में ....बहुत सुन्दर रचना ....

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीया किरण जी को पढ़ने ने का अनुभव तो ह्मेशा ही बहुत अच्छा होता है ...ये आपका ही जतन है कि उनका सृजन किया साहित्य लाभ हमें मिल रहा है .
    सही कहती है आप यह कविता वर्तमान सन्दर्भ में भी बहुत प्रासंगिक प्रतीत होती है .
    नववर्ष की अनंत मंगलकामनाएँ !!

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  4. दधि दूध छोड़ निर्मल जल तक
    पीने को प्राप्त नहीं होता,
    क्या जाने कब तक जागेगा
    इस उपवन का माली सोता,

    बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों का संगम इस रचना में ।

    नया साल मंगलमय हो ...शुभकामनाओं के साथ बधाई ।

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  5. बेह्द सुन्दर रचना।


    नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।

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  6. कविता बड़ी निर्मल लगी... बहुत सुन्दर...
    नववर्ष आपके और आपके सभी अपनों के लिए खुशियाँ और शान्ति लेकर आये ऐसी कामना है.
    मैं नए वर्ष में कोई संकल्प नहीं लूंगा

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  7. दधि दूध छोड़ निर्मल जल तक
    पीने को प्राप्त नहीं होता,
    क्या जाने कब तक जागेगा
    इस उपवन का माली सोता,
    यहाँ सदा अष्टमी आती है
    भोले भक्तों को छलती सी !

    bahut sundar
    khubshurat........

    नव वर्ष की शुभकामनायें।

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  8. दधि दूध छोड़ निर्मल जल तक
    पीने को प्राप्त नहीं होता,
    क्या जाने कब तक जागेगा

    बह रही वायु कुछ पलटी सी !
    सच..आज भी यह रचना..उतनी ही प्रासंगिक है....बहुत ही कुशलता से समाज की विसंगतियों पर दृष्टिपात कर भावों को उकेरा गया है....
    आदरणीय किरण जी की रचनाओं को पढना हमेशा एक सुखद अनुभूति से गुजरना होता है....शुक्रिया
    नव-वर्ष की शुभकामनाएं

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  9. बहुत सुन्दर रचना. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ !

    जवाब देंहटाएं
  10. बह चली वायु कुछ पलटी सी
    विक्षिप्त बढ़ी जाती संसृति
    कुछ ठिठकी सी कुछ चलती सी
    बह चली वायु कुछ पलटी सी ...

    अति सुन्दर रचना ....

    नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ ...पुखराज ..

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  11. आप को सपरिवार नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं .

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  12. विचारों से ओत-प्रोत सुन्दर रचना!
    नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  13. नये साल के उपलक्ष्य मे बेहतरीन रचना
    आपको नव वर्ष की हृार्दिक शुभकामनाये

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  14. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना |मम्मी की कविताए. पढवाने के लिए साधना तुम्हें जितना सराहा जाए कम है |
    आशा

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  15. गहन भावों की खूबसूरत अभिव्यक्ति. पढवाने के लिए आभार.

    अनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
    तय हो सफ़र इस नए बरस का
    प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
    सुवासित हो हर पल जीवन का
    मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
    करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
    शांति उल्लास की
    आप पर और आपके प्रियजनो पर.

    आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
    सादर,
    डोरोथी.

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  16. माँ की डायरी से मिली रचना सच में आज भी उतनी ही अर्थपूर्ण और सामायिक है जितनी उस समय रही होगी.
    बहुत ही अच्छी कविता .आभार आप को जो इसे हमसे बाँटा.
    .................................

    आपको और आपके परिवार को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें

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  17. सुन्दर रचना...किरण जी को पहले भी पढा है...

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  18. अनुपमा जी की संगीतमय हलचल का ' म' बनी यह प्रस्तुति
    बहुत ही अच्छी लगी साधना जी. माता जी को मेरा सादर
    प्रणाम.

    मेरी नई पोस्ट पर आईयेगा.

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  19. अब शक्ति न इतनी कष्ट सहे
    क्यों आशा भी हा जला रही,
    सुख अमृत दूर हटा हमसे
    विपदाओं का विष पिला रही,
    क्यों नहीं निराशा छा जाती
    आश्वासन आँचल झलती सी !

    bahut sundar !

    जवाब देंहटाएं