आज बहुत दिनों के बाद माँ के ब्लॉग पर उनकी एक बहुत पुरानी रचना प्रस्तुत कर रही हूँ जो सामयिक भी है और प्रासंगिक भी ! वर्षों पूर्व जब देश में नव गणतंत्र की स्थापना हुई थी यह रचना उन्होंने बच्चों के लिए लिखी थी ! कितनी सुन्दरता से इस रचना में साल के सभी पर्व त्यौहारों को बच्चों की दुविधा मिटाने के बहाने से उन्होंने व्याख्यायित किया है यह देखते ही बनता है ! तो लीजिये आप भी इस रचना का आनंद उठाइये !
गणतंत्र दिवस
बालक १ ---- हम स्वतंत्र हैं आज, हमारा ही भारत पर राज ,
दीप जलाओ, द्वार सजाओ, साजो मंगल साज
सबसे प्यारा, सबसे न्यारा यह पावन त्यौहार ,
जन गण मन अधिनायक गाओ सब मिल बारम्बार !
बालक २ ---- क्या संक्रान्ती आई हमको ले लड्डू का ढेर ,
शकरकन्द, अमरुद, जलेबी खायें देर सबेर,
तिल की पिट्ठी मल शरीर से बनें वीर सरदार ?
बालक १ ---- नहीं नहीं इससे भी प्यारा यह पावन त्यौहार
जन गण मन अधिनायक गाओ सब मिल बारम्बार !
बालक ३ ---- लाल-लाल टेसू बन फूले खेत खिले सुकुमार ,
उतर गगन से तारे आये पृथ्वी पर इस बार !
यह वसंत बन उपवन में ले आया नयी बहार ,
बालक १ ---- नहीं नहीं इससे भी प्यारा यह पावन त्यौहार ,
जन गण मन अधिनायक गाओ सब मिल बारम्बार !
बालक ४ ---- द्वेष ईर्ष्या को होली में भस्म करें सब लोग
बड़े प्रेम से गुजिया, पपड़ी खायें मोहन भोग !
लाल गुलाल अबीर उड़ायें, हो रंग की भरमार
बालक १ ----- नहीं नहीं इससे भी प्यारा यह पावन त्यौहार ,
जन गण मन अधिनायक गाओ सब मिल बारम्बार !
बालक ५ ---- क्या यह पड़वा, जिसको बदला संवत्सर शुचिमान ,
अथवा नवमी राम जनम की या जन्मे हनुमान ?
या फिर अक्षय तीज आई कम करने भू का भार ?
बालक १ ---- नहीं नहीं इससे भी प्यारा यह पावन त्यौहार ,
जन गण मन अधिनायक गाओ सब मिल बारम्बार !
बालक ६ ---- क्या गंगा दशमी आई फिर खोले ज्ञान कपाट ?
भागीरथ की कीर्ति कथा का हमें सुनाने ठाठ ?
जिनके उर में भरा हुआ था निज पितरों का प्यार ?
बालक १ ---- नहीं नहीं इससे भी प्यारा यह पावन त्यौहार ,
जन गण मन अधिनायक गाओ सब मिल बारम्बार !
बालक ७ ---- क्या आई यह जन्म अष्टमी ले जसुदा का लाल,
या विजया आई पहनाने रघुपति को जयमाल ?
अथवा शरद पूर्णिमा आई लेकर नव संसार ?
बालक १ ---- नहीं नहीं इससे भी प्यारा यह पावन त्यौहार ,
जन गण मन अधिनायक गाओ सब मिल बारम्बार !
बालक ८ ---- क्या यह दीपावली आई है ले दीपों की माल ,
आज बिछा दें जगमग करता धरती पर यह जाल ?
ले अनार, फुलझड़ी, पटाखे छोड़ें बारम्बार ?
बालक १ ---- नहीं नहीं इससे भी प्यारा यह पावन त्यौहार ,
जन गण मन अधिनायक गाओ सब मिल बारम्बार !
बालक ९ ---- समझ गया मैं देख तिरंगा लहराता यों आज,
फिर आया पंद्रह अगस्त है नया सजाओ साज !
बापू की , नेहरू की जय से गूँजे सब संसार ,
बालक १ ---- नहीं नहीं इससे भी प्यारा यह पावन त्यौहार ,
जन गण मन अधिनायक गाओ सब मिल बारम्बार !
बालक १० ---- समझ नहीं पाये हम खोलो तुम्हीं बुद्धि के द्वार ,
उलझ रहे हैं भूल भुलैयों में हम तो हर बार !
किसका स्वागत साज सजाता भारत का हर द्वार ,
बालक १ ---- यह गणतंत्र दिवस है प्यारा सुन्दर नव त्यौहार ,
जन गण मन अधिनायक गाओ सब मिल बारम्बार !
किरण
सभी साथियों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !
चित्र गूगल से साभार !
बहुत ही सुन्दर सामयिक प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंआपको भी गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !
साधना जी , कितना अच्छा लगता है मान के जीवंत अनुभवों को शब्दों में ढला हुआ देख कर . मैं माँ के लेखन की कायल हूँ।
जवाब देंहटाएंपढाने के लिए आभार !
बहुत सुन्दर और प्रेरक गीत!
जवाब देंहटाएंमाँ की बहुत सुंदर रचना ... आभार
जवाब देंहटाएंजनगण मनगण रहे सदा ही..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...
माँ की यही रचना मैंने भी अमृत कलश पर डाली है साधना |
जवाब देंहटाएंआशा
सुन्दर सामयिक प्रस्तुति और सुन्दर प्रेरक गीत
जवाब देंहटाएंसुन्दर और प्रेरक गीत ***गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंमन के सुन्दर देश भक्ति के भावों से परिपूर्ण एक विशेष अंदाज में लिखी आपकी माँ की कविता हेतु हार्दिक बधाई बहुत अच्छी लगी कविता आपको भी गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाएं
जवाब देंहटाएंसुन्दर..!!!
जवाब देंहटाएंप्रेरक ओर सुन्दर भाव लिए ...
जवाब देंहटाएंbilkul samyik....sunder.
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