गुरुवार, 29 मार्च 2012

रामनवमी

रामनवमी के उपलक्ष्य में माँ की एक उत्कृष्ट रचना आपके सामने प्रस्तुत करने जा रही हूँ ! आशा है आपको उनकी यह रचना अवश्य पसंद आयेगी !

अब तक तुमने राम सदा परतंत्र देश में जन्म लिया ,
परदेशी शासक की कड़वी अवहेला का घूँट पिया !

तब थे इस निराश भारत के तुम आधार, तुम्हीं स्तंभ ,
इन हताश पथिकों की मंजिल के थे राम तुम्हीं अवलंब !

तब तुम सदा प्रतीक्षित रहते सदा पुकारे जाते थे ,
संकटमोचन नाम तुम्हारा ले जन मन सुख पाते थे !

राजा का स्वागत राजा ही करते , रीत पुरानी थी ,
किन्तु विदेशी राजा को यह बात सदा अनजानी थी !

तब इस नवमी के अवसर पर जनता साज सजाती थी
आवेंगे अब राम हमारे ,सोच सोच सुख पाती थी |

इस परदेशी शासक से वे आकर पिंड छुडाएंगे ,
राज्य राम का होगा जब तब हम सब मिल सुख पाएंगे |

स्वप्न हमारा पूर्ण हुआ अब क्यूँ न मगन हो हर्षायें
अपने शासक की सत्ता के क्यूँ न हृदय से गुण गायें |

अब न हमें नैराश्य सताता व्यर्थ तुम्हें क्यों दुःख देवें ,
राम राज्य के इस सागर में नौका राजा खुद खेवें |

तुम आते हो तो आ जाओ अब तो राज्य तुम्हारा है
हम निश्चिन्त रहे अब क्यों ना राम राज्य जब प्यारा है |

बुरा ना मानो राम, आज जनता क्यों व्यर्थ समय खोवे
अब तो अपने ही शासक हैं क्यों ना चैन से हम सोवें |

तुम राजा हो राम हमारे, हम प्रसन्न इससे भारी ,
मंत्री मंडल करे तुम्हारे स्वागत की अब तैयारी |

हम तो दीन हीन सेवक हैं कैसे क्या तैयार करें
केवल थोड़े भाव पुष्प राजा जन से स्वीकार करें |

किरण






16 टिप्‍पणियां:

  1. waah kya baat hai. bahut sunder....lekin raam ji ki jarurat har ghar me hain har pran me hai.

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  2. बहुत सुन्दर....
    माँ से विरासत में बड़ा अनमोल खजाना पाया है..

    सादर...
    अनु

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति. माँ की धरोहर को हम लोगों तक लाने के लिए आप बधाई की पात्र हें.

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  4. स्वप्न हमारा पूर्ण हुआ अब क्यूँ न मगन हो हर्षायें
    अपने शासक की सत्ता के क्यूँ न हृदय से गुण गायें |

    माँ ने जब यह रचना लिखी होगी तब देश की आज़ादी का उत्साह रहा होगा ... पर जो सपने थे रामराज्य के वो तो कहीं खो गए हैं ...

    रचना बेहद सुंदर है ॥

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  5. बहुत सुन्दर और हृदयग्राही रचना |
    आशा

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  6. बहुत सुंदर रचना...
    आदरणीया माता जी ने इसकी रचना कब की थी, काल और परिप्रेक्ष्य जानने की उत्सुकता है.... ।

    सादर आभार।

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  7. रामराज्य अब भी परिकल्पना है, यथार्थ तो उससे कोसों दूर भाग रहा है। अनुपम रचना।

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  8. बुरा ना मानो राम, आज जनता क्यों व्यर्थ समय खोवे
    अब तो अपने ही शासक हैं क्यों ना चैन से हम सोवें |

    ....बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति...काश ये सपने पूरे हो जाते..

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  9. आदरणीया साधना जी माँ किरण जी नमन ...बहुत देर हो गयी इन रचनाओं तक नहीं पहुँच पाया था ..सच में नाम के अनुरूप ही उन्होंने ज्योति प्रकाशित की ..आप को भी बहुत बहुत बधाई और आभार ...जय श्री राधे ..मेरे ब्लॉग प्रतापगढ़ साहित्य प्रेमी पर समर्थन के लिए आभार ..कृपया अन्य पर भी स्नेह दें
    भ्रमर ५

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  10. बढ़िया प्रस्तुति ...
    शुभकामनायें आपको !

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