मैं फूलों में मुस्काती हूँ,
मैं कलियों में शरमाती हूँ,
मैं लहरों के संग गाती हूँ,
मैं तारों में छिप जाती हूँ !
चंदा तारे हैं मीत मेरे,
झंझा के झोंके गीत मेरे,
रिमझिम बादल की घुँघरू ध्वनि,
होते सुभाव अभिनीत मेरे !
यह अखिल विश्व रंगस्थल है,
इसमें जितनी भी हलचल है,
सब है जीवन का मोल भाव,
सबमें ममता, सब में छल है !
किरणों के झूले पर आती,
खिलखिल कर ऊषा हँस जाती,
संध्या वियोगिनी प्रिय सुधि में,
जब अरुण क्षितिज में खो जाती !
तब मेरे राग उभरते हैं,
तब मेरे प्राण उमड़ते हैं,
तब मेरे नयनों में करुणा
के घन चौकड़ियाँ भरते हैं !
क्यों ? नहीं जान मैं सकी कभी,
पर मन की गति ना रुकी कभी,
है एक यही कवि की थाती,
जो नहीं विश्व में बिकी कभी !
मैं हूँ सबमें, सब मुझमें हैं,
है यही चिरंतन शिवम् सत्य,
मैं भूतकाल, मैं वर्तमान ,
मैं ही आने वाला अगत्य !
किरण
सुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंअच्छी मन को प्रसन्नता देती कविता |
जवाब देंहटाएंआशा
khubshurat rachna....:) sach me man praffullit hua..:)
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
जवाब देंहटाएंकोमल भाव की रचना
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर !
जवाब देंहटाएंशब्द नही इस सुन्दर गीत के लिये। बधाई।
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