शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

प्रतीक्षा

आगमन सुन प्राणधन का
भर गया उल्लास मन में मिट गया सब क्लेश तन का !
आगमन सुन प्राणधन का !

साज भूषण, वसन नूतन, भेंट हित उत्सुक हृदय ले ,
चौक सुन्दर पूर कर डाले पलक के पाँवड़े ,
दीप साजे आरती को मैं चली ले स्नेह मन का !
आगमन सुन प्राणधन का !

जगत उपवन से निराली भाव कलिका का चयन कर ,
गूँथ ली इक प्रेम माला नयन मुक्ता कण पिरो कर ,
किन्तु भारी हो गया कटना मुझे हर एक छन का !
आगमन सुन प्राणधन का !

किन्तु रजनीपति छिपे, दीपक गगन के भी बुझे सब ,
वह हार भी मुरझा गया पर प्रिय ना आ पाये अभी तक ,
ज्योति नयनों की बुझी, पिघला न निष्ठुर हृदय उनका !
आगमन सुन प्राणधन का !


किरण

22 टिप्‍पणियां:

  1. किन्तु रजनीपति छिपे, दीपक गगन के भी बुझे सब ,
    वह हार भी मुरझा गया पर प्रिय ना आ पाये अभी तक ,
    ज्योति नयनों की बुझी, पिघला न निष्ठुर हृदय उनका !

    प्रतीक्षा के बाद की उदासी का वर्णन ...बहुत ही संवेदनशील रचना है ...

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  2. ज्योति नयनों की बुझी, पिघला न निष्ठुर हृदय उनका !
    आगमन सुन प्राणधन का !

    निर्मोही सों नेहा लगाए -
    अब कैसे जिया चैन पाए ...!!
    गहरी वेदना व्यक्त करती हुई सुंदर रचना -
    बधाई

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  3. बाट जोहती प्रेमिका के उल्लास का ..और फिर उसके टूटे ह्रदय का बहुत ही बढ़िया चित्रण हुआ है.

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  4. साज भूषण, वसन नूतन, भेंट हित उत्सुक हृदय ले ,
    चौक सुन्दर पूर कर डाले पलक के पाँवड़े ,
    दीप साजे आरती को मैं चली ले स्नेह मन का !

    संवेदनशील रचना, बहुत बहुत बधाई

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  5. बहुत भावप्रवण कविता |अभिव्यक्ति मन को दूर तक छू जाती है |
    आशा

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  6. बहुत दिनों बाद हिंदी के इस रूप में कोई रचना पढ़ी है अच्छा लगा |

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  7. Kya aprateem rachana hai!Dil jaise ise kisi karun raag me gaa ke sunaye!

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  8. आगमन सुन प्राणधन का
    भर गया उल्लास मन में मिट गया सब क्लेश तन का !
    आगमन सुन प्राणधन का !
    हमेशा की तरह बहुत ही सुंदर रचना, धन्यवाद

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  9. किन्तु रजनीपति छिपे, दीपक गगन के भी बुझे सब ,
    वह हार भी मुरझा गया पर प्रिय ना आ पाये अभी तक ,
    ज्योति नयनों की बुझी, पिघला न निष्ठुर हृदय उनका !

    vedna darshati rachna..bahut khub!

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  10. गहन वेदना का चित्रण्…………बेहद संवेदनशील्।

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  11. बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।

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  12. जगत उपवन से निराली भाव कलिका का चयन कर ,
    गूँथ ली इक प्रेम माला नयन मुक्ता कण पिरो कर ,
    किन्तु भारी हो गया कटना मुझे हर एक छन का !
    आगमन सुन प्राणधन का !
    --
    बहुत भावभरी रचना!

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  13. किन्तु रजनीपति छिपे, दीपक गगन के भी बुझे सब ,
    वह हार भी मुरझा गया पर प्रिय ना आ पाये अभी तक ,
    ज्योति नयनों की बुझी, पिघला न निष्ठुर हृदय उनका !

    गहन वेदना का चित्रण्..........

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  14. आगमन सुन प्राणधन का
    भर गया उल्लास मन में मिट गया सब क्लेश तन का ...

    सुन्‍दर भावमय गहरी प्रस्तुती ...

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  15. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 22- 02- 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  16. क्या लिखूं...??



    शब्दों की इतनी सुन्दर माला

    गूंथी है आपने......

    शुद्ध,परिष्कृत,सुन्दर शैली...

    मुझे शब्द नहीं मिल पा रहे हैं.....

    क्या लिखूं.....???

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  17. पुनश्च.......

    कई रचनाये पढ़ डाली पर मन नहीं भरा !!

    भाषा का सही स्वरुप...

    महादेवीजी की याद ताज़ा हो आई...

    जितना पढ़ती हूँ उतनी और पढने की इच्छा बलवती होती जाती है..

    आपका बारम्बार धन्यवाद जो हमें इतने सुन्दर रचनाओं से अवगत कराया !!

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