निज मन मंदिर में मैंने है
अतिथि बसाया एक नया,
वार दिया उस पर अपनापन
उससे ही वैराग्य लिया !
अनजाने आ छिपा कहीं से
उसको नहीं देख पाई,
उसके आने से जीवन में
एक नयी आँधी आई !
उसने सुख के स्वप्न तोड़ कर
कुचल दिये सारे अरमान,
अभिलाषा का हव्य बना कर
महायज्ञ का किया विधान !
आशाओं के दुर्ग तोड़
अधिकार जमाया आ सब ओर,
एक निराशा भवन बना कर
उसमें आन छिपा वह चोर !
दो अक्षर का नाम बता कर
देता परिचय और नहीं,
सब संसार देख आई पर
हो न जहाँ वह ठौर नहीं !
अति आदर से हृदय कुञ्ज में
उसको ठहराया सजनी,
जीवन बना पहेली मेरा
जैसे भेद भरी रजनी !
किरण
सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआनंद आ गया
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद इसे पडःअवाने के लिए।
अच्छी रचना |
जवाब देंहटाएंदो अक्षर का नाम बता कर
जवाब देंहटाएंदेता परिचय और नहीं,
सब संसार देख आई पर
हो न जहाँ वह ठौर नहीं !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...यह दो आखर का नाम क्या हो सकता है ?
अपनेपन से वैराग्य उत्पन्न होना ...अद्भुत शब्द संयोजन है ...
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जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा पढ़ कर |सुन्दर भाव और भाषा |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत ही सुन्दर भावमय प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंbahut badhiyaa
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भाव लिए...ख़ूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंदो अक्षर का नाम बता कर
जवाब देंहटाएंदेता परिचय और नहीं,
सब संसार देख आई पर
हो न जहाँ वह ठौर नहीं !
बहुत ही सुन्दर रचना