हा सूखी उर की डाली !
आज गया है रूठ अनोखा इस उपवन का माली !
हा सूखी उर की डाली !
स्वाँस पवन की शीतलता से मिटा न उसका ताप,
आशा की किरणें आकर के बढ़ा गयीं संताप,
नयन सरोवर लुटकर भी हा कर न सके हरियाली !
हा सूखी उर की डाली !
भाव कुसुम अधखिली कली भी हाय न होने पाये,
असमय में ही विरह ज्वाल में दग्ध हुए मुरझाये,
शब्द पल्लवों से आच्छादित काव्य-कुञ्ज हैं खाली !
हा सूखी उर की डाली !
किरण
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है ,,,ऐसी रचना के सृजन का महारथ हांसिल है आपको ,,,अति सुन्दर प्रस्तुति ,,,,बस थोड़ी ही शंका है 'उर' का अर्थ नहीं याद आ रहा ,,,,जरुर बताएं ...कम्बखत साइंस की पढाई के चक्कर में हिन्दी नाराज़ सी रहती है ....कुछ शब्द जहन में अटके पड़े है ....एक विनती और 'एक दोहा पढ़ा बचपन था -बिंगरी बात बने नहीं.....इसमे 'किन' शब्द का अर्थ कहीं 'कोशिश या प्रयास' जैसा तो कुछ नहीं ....
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत!!
जवाब देंहटाएंआपकी प्रशंसा के लिए आभारी हूँ ! 'उर' का अर्थ होता है 'ह्रदय' ! आपने जिस दोहे का अर्थ जानना चाहा है कृपया उसे पूरा लिखिए क्योंकि मुझे भी वह याद नहीं आ रहा है ! पूरा पढने के बाद शायद मैं आपकी कोई सहायता कर पाऊँ ! धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंशब्द पल्लवों से आच्छादित काव्य-कुञ्ज हैं खाली !
जवाब देंहटाएंहा सूखी उर की डाली ....
बहुत बढ़िया ...!!
shayad sachcha prem yahi hai, marmik abhivyakti
जवाब देंहटाएंbahut sundar abhivyakti.
जवाब देंहटाएंवाह.. संवेदी रचना.. साधुवाद..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है। बेहतरीन सृजन का कमाल!!
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