शुक्रवार, 28 मई 2010

उर की डाली

हा सूखी उर की डाली !
आज गया है रूठ अनोखा इस उपवन का माली !
हा सूखी उर की डाली !

स्वाँस पवन की शीतलता से मिटा न उसका ताप,
आशा की किरणें आकर के बढ़ा गयीं संताप,
नयन सरोवर लुटकर भी हा कर न सके हरियाली !
हा सूखी उर की डाली !

भाव कुसुम अधखिली कली भी हाय न होने पाये,
असमय में ही विरह ज्वाल में दग्ध हुए मुरझाये,
शब्द पल्लवों से आच्छादित काव्य-कुञ्ज हैं खाली !
हा सूखी उर की डाली !

किरण

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है ,,,ऐसी रचना के सृजन का महारथ हांसिल है आपको ,,,अति सुन्दर प्रस्तुति ,,,,बस थोड़ी ही शंका है 'उर' का अर्थ नहीं याद आ रहा ,,,,जरुर बताएं ...कम्बखत साइंस की पढाई के चक्कर में हिन्दी नाराज़ सी रहती है ....कुछ शब्द जहन में अटके पड़े है ....एक विनती और 'एक दोहा पढ़ा बचपन था -बिंगरी बात बने नहीं.....इसमे 'किन' शब्द का अर्थ कहीं 'कोशिश या प्रयास' जैसा तो कुछ नहीं ....

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  2. आपकी प्रशंसा के लिए आभारी हूँ ! 'उर' का अर्थ होता है 'ह्रदय' ! आपने जिस दोहे का अर्थ जानना चाहा है कृपया उसे पूरा लिखिए क्योंकि मुझे भी वह याद नहीं आ रहा है ! पूरा पढने के बाद शायद मैं आपकी कोई सहायता कर पाऊँ ! धन्यवाद !

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  3. शब्द पल्लवों से आच्छादित काव्य-कुञ्ज हैं खाली !
    हा सूखी उर की डाली ....
    बहुत बढ़िया ...!!

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  4. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है। बेहतरीन सृजन का कमाल!!

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