ये रजनी के उर क्षत सजनी !
चम-चम करते रहते प्रतिपल,
झर-झर झरते रहते हर क्षण,
पी-पी कर ह्रदय रक्त पागल
ये लाल बने रहते सजनी !
ये रजनी के उर क्षत सजनी !
वह दीवानी ना जान सकी,
पागल सुख के क्षण पा न सकी,
सूने उर में भर अंधकार
जग को चिर सुख देती सजनी !
ये रजनी के उर क्षत सजनी !
दुखिया जीवन में हाय न कुछ,
रोना, रोकर खोना सब कुछ,
सीखा रजनी से मैंने भी
यह धैर्य अटल अद्भुत सजनी !
ये रजनी के उर क्षत सजनी !
उसके उर क्षत मेरे वे पथ,
औ प्रिय नयनों के बने सुरथ,
मेरे ये उत्सुक नयन वहाँ
उनको लख सुख पाते सजनी !
ये रजनी के उर क्षत सजनी !
किरण
waah ek adbhut geet...
जवाब देंहटाएंउसके उर क्षत मेरे वे पथ,
जवाब देंहटाएंऔ प्रिय नयनों के बने सुरथ,
मेरे ये उत्सुक नयन वहाँ
उनको लख सुख पाते सजनी !
ये रजनी के उर क्षत सजनी !
वाह ! बहुत खूब ,,,अति सुन्दर
अदभुद |बहुत सुंदर शब्द चयन |
जवाब देंहटाएंआशा
Bahut,bahut sundar rachna....hameshaki tarah..aapki rachnape tippanee dena bada kathin hota hai...!Samajhme nahi aata kaunse alfaaz istemaal kiye jayen!
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,
जवाब देंहटाएंदुखिया जीवन में हाय न कुछ,
जवाब देंहटाएंरोना, रोकर खोना सब कुछ,
सीखा रजनी से मैंने भी
यह धैर्य अटल अद्भुत सजनी !
ये रजनी के उर क्षत सजनी !
apki maa ji ki ye kavitaye sach me sahezne laayak hi hain. kritarth hui apki...is rachna ko padh kar. sadhuwad.
लाजवाब प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंkhoobsurat rachna.
जवाब देंहटाएं