रो रही है सर पटक कर ज़िंदगी
और बढता जा रहा है कारवाँ संहार का !
कंठ में भर स्वर प्रभाती का मधुर
अलस कलिका संग कीलित नव उषा,
खिलखिलाती आ गयी जब अवनितल
देख उसका लास यह बोली निशा,
ह्रास मेरा दे रहा जीवन तुझे,
क्रम यही है निर्दयी संसार का !
रो रही है सर पटक कर ज़िंदगी
और बढता जा रहा है कारवाँ संहार का !
छोड़ हिमगिरी अंक को उन्मत्त सी
उमड़ कर सरिता त्वरित गति बह चली,
माँगते ही रह गए तट स्नेह जल,
बालुका का दान रूखा दे चली,
जब मिटा अस्तित्व सागर अंक में
कह उठी, ‘है अंत पागल प्यार का’ !
रो रही है सर पटक कर ज़िंदगी
और बढता जा रहा है कारवाँ संहार का !
जन्म पर ही मृत्यु ने जतला दिया
सृजन पर है नाश का पहला चरण,
क्षितिज में अस्तित्व मिटता धरिणी का,
खिलखिलाता व्योम कर उसका हरण,
अश्रु जल ढोता सदा ही भार है,
प्रेम का और हर्ष के अभिसार का !
रो रही है सर पटक कर ज़न्दगी,
और बढता जा रहा है कारवाँ संहार का !
किरण
वाह ! बहुत सुन्दर कविता ....अच्छे शब्दों का चयन किया है ......एक शानदार सृजन ...अच्छी लगी ..धन्यवाद इस प्रस्तुति के लिए
जवाब देंहटाएंपाठकों की सुविधा के लिए कुछ शब्दों के अर्थ उनकी इच्छ्नुसार दे रही हूँ ! जो पाठक इन्हें पहले से ही जानते हैं कृपया इसे अन्यथा ना लें !
जवाब देंहटाएंकीलित - मन से बँधा हुआ, समर्पित
लास - प्रसन्नता, जश्न मनाना
ह्रास - पतन, विनाश
बालुका - रेत
व्योम - आकाश
ह्रास मेरा दे रहा जीवन तुझे,
जवाब देंहटाएंक्रम यही है निर्दयी संसार का !
रो रही है सर पटक कर ज़िंदगी
और बढता जा रहा है कारवाँ संहार का !
Aise alfazon par kya kahe koyi? Mai khamosh laut rahi hun..
काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर शब्द चयन ,और भाषा का प्रयोग किया है |
जवाब देंहटाएंसार्थक अभिब्यक्ति कविता को जीवंत बना गई |
आशा
प्रवाहमयी ढंग से प्रस्तुत किया गया कटु सत्य!
जवाब देंहटाएंसाधुवाद!