मंगलवार, 29 जून 2010

दो बूँद

मेरे प्राणों की पीड़ा दो भागों में बँट कर के,
बन कर आँसू छलक पड़ी है दो बूँदों में ढल के !

या आशा और निराशा के दो फल बन स्वयम् फले ये,
अपनी गाथा को कहने गालों पर ढुलक चले ये !

हैं ये करुणा के द्योतक या ज्वाला की चिन्गारी,
या जगती का जीवन है नयनों का पानी खारी !

दावा बन ह्रदय जलाया अब बन कर जल नयनों से,
छल छल कर कथा व्यथा की कह रहे मौन नयनों से !

ओ दृगजल के दो बिन्दू कुछ तो बतलाते जाओ,
क्या भेद भरा है तुममें यह तो समझाते जाओ !

इन प्राणों की पीड़ा को तुमने सहचरी बनाया,
जब जली व्यथा ज्वाला में तुमने निज अंक लगाया !

मेरी पीड़ा के सहचर या तो गाथा कह जाओ,
या संग में अपने ही तुम उसे बहा ले जाओ !

किरण

6 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी पीड़ा के सहचर
    या तो गाथा कह जाओ
    या संग बहा ले जाओ ...
    वाह !
    मौन व्यथा नैनो की पीड़ छलक कर आंसुओं में सीधे दिल तक पहुँच रही है ...
    आह !

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  2. ओ दृगजल के दो बिन्दू कुछ तो बतलाते जाओ,
    क्या भेद भरा है तुममें यह तो समझाते जाओ !

    किरण जी की कविताओं में एक अलग ही आनंद है...कविताओं के साथ स्वयं को बहता हुआ महसूस होता है ....सुन्दर कृति

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  3. हैं ये करुणा के द्योतक या ज्वाला की चिन्गारी,
    या जगती का जीवन है नयनों का पानी खारी !

    दावा बन ह्रदय जलाया अब बन कर जल नयनों से,
    छल छल कर कथा व्यथा की कह रहे मौन नयनों से !
    साधना जी बहुत भावमय है आपकी रचना बधाई

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  4. मेरी पीड़ा के सहचर या तो गाथा कह जाओ,
    या संग में अपने ही तुम उसे बहा ले जाओ !
    Peedaa kee tees zabardast hai...har shabd me masoos hotee hai..aapkee rachnayen waqayi behad sashakt hoti hain.

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  5. दावा बन ह्रदय जलाया अब बन कर जल नयनों से,
    छल छल कर कथा व्यथा की कह रहे मौन नयनों से !
    बहुत ही भावुक और संवेदनशील रचना...

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  6. मेरी पीड़ा के सहचर या तो गाथा कह जाओ,
    या संग में अपने ही तुम उसे बहा ले जाओ

    बहुत खुबसूरत रचना ....

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