बुधवार, 17 फ़रवरी 2010
उन्मना
दीप की सुज्वाल में
शलभ राख जा बना
उडुगनों की ज्योति से
न हट सका कुहुर घना
सृष्टिक्रम उलझ सुलझ
खो रहा है ज़िन्दगी
नियति खोजती सुपथ
बढ़ रही है उन्मना !
किरण
नई पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
संदेश (Atom)